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05 सितंबर, 2016

शिक्षक दिवस पर टिप्पणी



शिक्षक दिवस पर टिप्पणी
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केवल कलक्टर,एसपी और डॉक्टर-इंजिनियर तैयार कर लेने में ही शिक्षक या गुरु की सफलता मान लेना एकांगी सोच है.इस समाज को लेखक,कवि,समाज सुधारक,सामाजिक कार्यकर्ता,चित्रकार,नर्तक,गायक की भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी किसी प्रशासनिक और कमाऊ नौकरी वाले वर्ग की.आज दैनिक भास्कर के चित्तौड़ संस्करण में प्रकाशित मेन स्टोरी का मैं पूरा सम्मान करता हूँ और टीम को बधाई भी देता हूँ मगर फिर भी मेरा मानना है कि हमारे समाज में विद्या अध्ययन से मिलने वाले हासिल में जिस तरह के मानक गढ़ दिए गए हैं उनमें आज भी इन तीन चार प्रमुख नौकरियों को जिस तरह से महिमामंडित किया जता है कि बाकी के काम हेय और कमज़ोर तबियत के माने जाते हैं.जब हम अपने बच्चों को अर्थ केन्द्रित और पेकेजगिरी वाली नौकरियों के ही तैयार करना चाहते हैं तो क्यों ओलम्पिक में मैडल की आस लगाते हैं.आश्चर्य है जबकि हम हर बच्चे को केवल बड़ी सेलेरी वाली या रुतबे वाली नौकरियों के लिए पढ़ाना लिखाना चाहते हैं.बेशक यह आशा पालनी चाहिए मगर सवाल यह है कि क्या यही सही मानक है.स्टोरी की सफलता और सार्थकता अलग अलग है.बहुत अच्छी स्टोरी थी.मेहनत से तैयार भी.

मुझे लगता है हमें एक बेलेंस विचार के तहत सोसायटी के मानस में बहुत गहरे तक बैठी गलत मानसकिता को ठीक करना होगा.अखबार या मीडिया का कोई भी मंच समाज को बदलने की बड़ी ताकत रखता है.हम यह कहकर नहीं मुकर सकते कि अमूमन समाज में यही सोच है.बेशक यही सोच है मगर इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा नहीं जानते.सभी सिविल सर्विस में जाने लग जाएंगे तो मीरा.रैदास,मुनि जिनविजय,हरिभद्र सूरी,शहीद मेज़र नटवर सिंह,कुमार गंधर्व कौन बनेगा.

दिल दुखता है जब इस समाज में हम महिला दिवस पर केवल उन मांओं का ही सम्मान करते हैं जिनके बेटे-बेटी कलक्टर,एसपी और आरटीओ ऑफिसर हैं.कई बार हम जो करते हैं उसके असर से वाकिफ नहीं होते.भीतर ही भीतर ही हम समाज के मानस को बनाते हैं.हमारा लिखा लोगों पर दूर तक असर करता है.अब बताओ उन अभिभावकों का क्या दोष या उन शिक्षकों का क्या दोष जिन्होंने बेहतर इंसान और एक बेलेंस समाज बनाने के क्रम में अच्छे चित्रकार,गीतकार,सामाजिक कार्यकर्ता,जानकार एवं कर्मठ राजनेता और अध्यापक तैयार किए.सम्मान सभी का हो मगर हमारे सम्मान देने के एकांगी सोच के कारण समाज में क्या स्थिति पैदा होती जा रही है इस बात भी जोर देना होगा.यह बहस और सोच दोनों का विषय है.

कभी कभी लगता है शिक्षक दिवस और गुरु पूर्णिमा अलग अलग है. क्या गुरु पूर्णिमा पर हम उन्हें ज्यादा प्रणाम करते हैं जो सीधे तौर पर हमें अकादमिक शिक्षा नहीं देते हैं. यह सबकुछ मैं अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ शायद आपका अनुभव भी मेरे से मेल खाता हो.शिक्षक दिवस का अर्थ हम सिर्फ स्कूल और कॉलेज की अकादमिक और किताबी शिक्षा तक सिमित मानते हैं.मेरा मामना है कि गुरु और शिक्षक एक ही बात है बशर्ते कि शिक्षक गुरु बनकर अपने शिष्यों को किताब और किताब के बाहर की दुनिया देखना सिखाए.इस मुश्किल समय में किताब से ज्यादा जरुरी किताब के बाहर की दुनिया है.

आज आर्ट और कल्चर के क्षेत्र को आजीविका के तौर पर देखना बहुत बड़ा खतरा मोल लेने जैसा हो गया है क्यों? कभी सोचें.ऐसी स्थितियाँ क्यों पैदा हुई? हमारे समाज में इन विधाओं और संवेदनशील इंसान तैयारी करती ललित कलाओं को गैर ज़रूरी मान लिया गया है.हम जिस परिवेश में रहते हैं वहाँ श्रम के सौंदर्यशास्त्र को देखने का नज़रिया बड़ा बेतरतीब है.जिस काम में मेहनत कम और कम पसीना बहे वह बेहतर मानी जाती है.गज़ब का गणित है.फिर तो इस देश में किसान,सफाई कर्मचारी,मजदूर का जीवन और उनका योगदान कभी भी सम्मान योग्य नहीं माना जाएगा.क्या इस देश में कभी किसी कारीगर,मजदूर,सफाई कर्मचारी,कुम्हार,चित्रकार,बढ़ाई,सुनार,लुहार को एक बेहतर और सफल इंसान की नज़र से देखा जाएगा.इन सभी को भी कहीं न कहीं एक गुरु या शिक्षक ने ही तैयार किया होगा.बात लम्बी है मैं इसे आप पर छोड़ता हूँ.आप इसे आगे बढ़ाएं.मैं शिक्षक दिवस के इस मौके पर एक बेहतर समाज का सपना देखने की अपनी आकांक्षा को फिर से दोहराता हूँ.
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जहां चाह है वहाँ राह है.नए स्कूल में मन रमने लगा है.आजकल मैं स्कूली बच्चों के साथ विभिन्न प्रयोग कर रहा हूँ.सिलेबस के अलावा भूत-प्रेत,वेस्टर्न-भारतीय कल्चर,अन्धानुकरण-अनुकरण,लैंगिक समानता जैसे जरुरी मुद्दों पर उनका मन टटोलते हुए तार्किक संवाद गूंथता हूँ.अकादमिक टाइम टेबल में जितना संभव हो उतना.कुछ दिन प्रार्थना में ध्यान और मेडिटेशन पर फोकस किया.एक दिन तो हमारे दोस्त और प्रतिबद्ध कवि-लेखक अशोक कुमार पाण्डेय की कविता 'माँ की डिग्रियां' सुनाई.पूरी प्रार्थना सभा स्तब्ध और रोमांचित.एक यादगार पाठ.उन्हें कविता छू गयी.दूसरा मामला यह कि मैंने कक्षा सात और आठ के चयनित बच्चों के साथ चर्चा करते हुए कुछ चुनिन्दा हिंदी कवियों की लोकप्रिय कविताओं के टेक्स्ट उन्हें उपलब्ध करवाया.याद करवाए और लगे हाथ कविता पाठ की तालीम दी.आज एक स्कूली आयोजन में बच्चों ने मुक्तिबोध,नागार्जुन,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और भवानीप्रसाद मिश्र को अपने गले से दोहराया तो मेरा दिल फक्र से गदगद हो गया.
तीसरा प्रयोग प्रार्थना सभा में सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर का सिलसिला.प्रश्नों का चयन और उनका सिलसिला एक तसल्ली दे रहा है.मैं अपनों बच्चों को अपने तरीके से बदल रहा हूँ.एक और वाकया एक विजन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट के छात्र शैलेश Shailesh Chattrpal का जिसने कुछ दिन पहले पहली दफा 'आरोहण' पर मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कहानी पाठ सुना, बड़ा प्रभावित हुआ.प्रेमचंद जी की चयनित कहानियां का संग्रह मांगकर ले गया.बाद में मिला तो बड़ा अद्भुत आनंद महसूसते हुए शुक्रिया करने लगा.एक करके कहानियों का ज़िक्र करने लगा.थामे न थमे.मुझे बहुत खुशी हुई.बोला यह बात मेरे दोस्त नजमुल को भी मैंने बताई तो सर वो संग्रह मैं पढ़कर अब कुछ दिन नजमुल को दूंगा.मैंने कहा एक किताब की किस्मत इससे अच्छी क्या होगी कि पाठक उसे छिनाझपटी करके पढ़ना चाहे.

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