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31 जनवरी, 2017

रेडियो वार्ता:सरदार वल्लभ भाई पटेल:कृतित्व और व्यक्तित्व

(यह वार्ता आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ पर 31 अक्टूबर २०१६ को प्रसारित हुई वहीं से साभार यहाँ प्रकाशित है)
रेडियो वार्ता
सरदार वल्लभ भाई पटेल:कृतित्व और व्यक्तित्व
वार्ताकार-डालर सोनी

गुलाम हिन्दुस्तान में भारत की आज़ादी के लिए किए गए लम्बे संघर्ष की कथा में आए सन्दर्भों को देखे तो पाएंगे कि जिन प्रतिबद्ध राजनीतिकों का नाम अक्सर लिया जाता है उनकी फेहरिश्त में सरदार वल्लभ भाई पटेल भी एक बड़ा और ज़रूरी नाम है। चाहे बात देसी रियासतों को एकजुट करके भारतीय लोकतंत्र में शामिल करने का मसले की हो या फिर खेड़ा और बारदौली किसान आन्दोलन की चर्चा हो, पटेल का योगदान महत्वपूर्ण था। भारतीय राष्ट्र्रीय कांग्रेस के संगठनात्मक ढाँचे को लगातार मजबूत करने और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार को अपनाते हुए उन्हें आगे बढ़ाने के लिए भी सरदार पटेल को याद किया जाता है। सरदार वल्लभ भाई इसलिए भी आज महत्पूर्ण है कि तमाम मतभेदों के बावजूद उन्होंने आज़ाद भारत की पहली सरकार में बतौर गृह मंत्री हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का पूरा साथ दिया था। गांधीजी के अहिंसात्मक आन्दोलनकारी नज़रिए से असहमत होते हुए भी वे तात्कालिक समय और समाज के लिए गांधी की ज़रूरत को बहुत मान देते रहे। जब भी साहसिक राजनेता और कुशल संगठनकर्ता की चर्चा चलेगी तो हमें पटेल ज़रूर याद आएँगे। वे नहीं होते तो गुज़रात के किसानों की पीड़ा से जुड़े गैर ज़रूरी लगान वृद्धि के वे तमाम आन्दोलन सफल नहीं हो सकते थे। उस वक़्त के गुजरात-महाराष्ट्र इलाके से जुड़े पटेल जैसा व्यक्तित्व केवल उसी प्रादेशिक सीमा में नहीं बंधकर सम्पूर्ण भारतीय पोलिटिक्स में हिस्सेदारी करने लगा था वही बात आज उनका कद बढ़ाती है।

एन सी मेहरोत्रा और डॉ. रंजना कपूर द्वारा पटेल पर सन 2002 में लिखी पुस्तक सरदार वल्लभ भाई पटेल:कृतित्व और व्यक्तित्व के अनुसार सरदार पटेल का जन्म इकत्तीस अक्टूबर 1875 में गुजरात में हुआ। इनके पिताजी का नाम झवेर भाई पटेल और माँ का लाड़ बेन था वहीं पुत्र दहया भाई और पुत्री मणि बेन थी। शुरुआती पढ़ाई लिखाई और वैवाहिक जीवन की परेशानियों के बाद उनका दृढ निश्चय उन्हें लन्दन ले गया जहां उन्होंने अटूट मेहनत के साथ कानून की पढ़ाई की। स्कूली जीवन के दौरान उनके परम्परागत खेतीबाड़ी के काम और कृषक जीवन से जुड़ी खेत खलिहान की यात्राओं का असर उन पर जीवनभर रहा। कुलमी वर्ग से थे मगर जीवन में कभी खेती नहीं की। इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और उसमें कृषि-पशुपालन के योगदान का गणित वे बहुत पहले ही समझ चुके थे।  वे बचपन में ही किसानों की दुखभरी ज़िंदगी को देख-सुन रहे थे और वही अनुभूति उनके लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान परिदृश्य को समझने में काम भी आई। असहमति पर अपने विचार रखने का साहस उनमें अपनी प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षा के साथ ही विकसित हो चुका था जिस पर उनके कई अध्यापक शुरुआत में उन पर चिढ़े भी। उन्नीस सौ दस से लगभग तीन साल तक वे इंग्लैड ही रहे। भारत लौटने के बाद भी लगभग पांच साल वकालात की और समस्त प्रकार की पोलिटिकल गतिविधियों से दूर ही रहे। हमारी भारतीय राजनीति में उस दौर में भी कई राजनेता कानून पढ़ रहे थे, सिविल सेवा में जा रहे थे, विदेशी षड्यंत्रों को ठीक से समझ कर भारतीय सन्दर्भ में आज़ादी के लिए माहौल बना रहे थे। देशभर में घूमकर भारतीय जनमानस का मन टटोल रहे थे। भारतीयों के बीच की मूल समस्याओं को समझ बूझकर उन्हें आन्दोलन के लिए प्रेरित कर रहे थे। उन्हीं प्रेरक इंसानों में पटेल भी शामिल थे। 

किसान आन्दोलन में उनकी नेतृत्व क्षमता के मद्देनज़र ही गुजराती महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि से नवाज़ा तो देसी रियासतों को सही रास्ता दिखाकर सलाह मशवरा और सैन्य कार्यवाही जैसे सभी तरीकों से काम करने की नीति के चलते उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा गया। यहाँ सरदार का अर्थ नायक या सेनापति था।  भरपूर विनम्र और एक जानकार नेता पटेल गांधी जी में बड़ी आस्था रखते थे। शायद आपको याद हो आज़ाद भारत के लिए पहले प्रधानमंत्री का चयन करते समय अधिकाँश क्षेत्रीय परिषदों की इच्छा होने के बावजूद गांधी जी के कहे पर सरदार पटेल ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी। कुल मिलाकर उन्होंने अपने पिचहत्तर बरस के जीवन में जो मौलिक सूझ के साथ जनपक्षधर काम किए कि उनके जीते जी तो उन्हें भारतीयों ने खूब प्यार दिया ही मगर भारत सरकार ने उन्हें उन्नीस सौ इक्यानवे में भारत रत्न से नवाज़ा। उनका कद उनके राष्ट्रीय योगदान की वजह से ही है जैसे आम लोगों और इतिहासकारों को उनमें एक साथ कौटिल्य, बिस्मार्क और अब्राहम लिंकन नज़र आते हैं। उनका पूरा राजनितिक जीवन ही उन्हें सही मायने में लौह पुरुष बनाता है।

महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ छेड़े गए अपने तरीके के आन्दोलन वाले वक़्त में गांधी जी के नैतिक आदर्शों ने पटेल को खासा प्रभावित किया और वे सन सत्रह में सत्याग्रही बन बैठे। उनका आचार विचार और रहन सहन सबकुछ बदलने लगा। तीस के दशक के गिने चुने आन्दोलन में भागीदारी से ही बनी पहचान के चलते राष्ट्रीय राजनीति में उनकी व्यावहारिक बुद्धि और कुशल अगमचारी की भूमिका से अँगरेज़ सरकार उनसे घबराने लगी। स्वतन्त्रता की जंग में बहुप्रसिद्ध दांडी यात्रा के मददेनज़र भी सरदार पटेल ने बहुत मेहनत की और यात्रा को सफल बनाया, इस बात को गांधी जी ने भी बहुत करीब से महसूस किया। बाकी नेताओं की तरह सरदार पटेल भी कई मर्तबा जेल यात्राएं कर चुके थे। सरदार पटेल का कद इसलिए भी ऊंचा माना जाए कि गांधी जी में आस्था होते हुए भी उन्होंने वक़्त बे वक़्त उनके अहिंसा के रास्ते को चैलेन्ज किया और अव्यावहारिक सिद्ध किया। 

पटेल का सबसे बड़ा योगदान लगभग उन पौने छह सौ देसी रियासतों का एकीकरण भी है जिन्हें कुटनीतिक तरीके से अँगरेज़ बरगला गए थे कि वे हमारी तरफ से आज़ाद हैं चाहें तो पाकिस्तान में मिलें या फिर हिन्दुस्तान में क्योंकि अभी तक वे ब्रिटिश सरकार के बजाय ब्रिटिश ताज़ के अधीन थीं। खैर कानूनी भाषा की उस उलझन को भी वल्लभ भाई ने बहुत गंभीरता और श्रम से निबटा लिया। हैदराबाद का मुस्लिम निजाम, जम्मू कश्मीर का हिन्दू राजा और जूनागढ़ रियासत का निजाम इस एकीकरण की प्रक्रिया में बड़ा रोड़ा अटका रहे थे। वहाँ की जनता का मन कुछ और था और सत्ता की लालसा में वहाँ के निजामों का दिल कुछ और चाहता था। देश की आज़ादी के बाद ठीक एक साल तक यह मुश्किल चलती रही मगर पटेल ने हार नहीं मानी। जहां ज़रूरत लगी उन्होंने सेना का भी साथ लिया। कभी कभी लगता है यह कुटनीतिक काम केवल सरदार पटेल ही कर सकते थे। बिना खून खराबा किए भारतीय महासंघ बनाने की यह प्रक्रिया पटेल की मेधा से ही संभव हुई।

सरदार पटेल की सदाशयता और राष्ट्र के प्रति अटूट आस्था का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होने के बावजूद वे पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री चयन पर खुश ही थे। ये ही नहीं उनके पंडित नेहरू को लिखे पत्रों की भाषा से साफ़ झलकता है कि वे उन दोनों के बीच तीस साल पुरानी अटूट मित्रता निभाते हुए देशहित में गृहमंत्री का पद न केवल स्वीकार करते हैं बल्कि उसे पूरी तल्लीनता से निभाते भी हैं। ये अलग विषय है कि बाद के सालों में उनके और पंडित नेहरू के बीच कुछ राजनितिक मतभेद कायम हो गए थे। 

सुशील कपूर की लिखी पुस्तक लौहपुरुष सरदार पटेल की माने तो एक बार की बात है वे, गांधी जी और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के कहे पर दक्षिण भारत गए जहां वे ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण वर्ग के भीच के भेदभाव और विवाद से बड़े व्यथित हुए। इस तरह वे उस ज़माने में भी साम्प्रदायिक सद्भाव और गैर-बराबरी के लिए लगातार कोशिशें करते नज़र आए। बाल विवाह के विरोध में और विधवा विवाह के पक्ष का माहौल बनाने के कई किस्सों पर पटेल का नाम लिखा हुआ है। वकालात के अनुभव के कारण उनके भाषणों में उन्हें सुनते हुए लोग उनकी तर्क शक्ति के कायल हो चुके थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी पटेल असल में उस त्रयी में शामिल थे जिसमें उनके अलावा गांधी और नेहरू को गिना जाता है। एक तरफ जहां राजेंद्र मोहन भटनागर ने पटेल के संघर्षमयी जीवन पर केन्द्रित एक हिंदी उपन्यास 'सरदार' नाम से लिखा है वहीं दूसरी तरफ विजय तेंदुलकर की लिखी पटकथा पर निर्देशक केतन मेहता ने सन उन्नीस सौ तिरानवे में सरदार नाम से ही एक फ़िल्म भी बनाई है। पटेल के अवदान को सम्मान देने के लिहाज से एक जानकारी के अनुसार सरदार वल्लभ भाई पटेल का एक विशालकाय और संभवतया दुनिया का सबसे बड़ा स्टेच्यू गुजरात में बनाया जा रहा है जो लगभग 182 मीटर ऊंचा होगा और उसे स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी के नाम से जाना जाएगा।

आज भी हम जिन भौगोलिक सीमाओं के बीच हिन्दुस्तान में रह रहे हैं इस संगठित भारत की मुकम्मल तस्वीर का पूरा क्रेडिट सरदार पटेल को ही जाता है। एक और तथ्य ये कि वे हमारे देश के पहले गृहमंत्री होने के साथ ही पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रहे हैं। सन उन्नीस सौ चौरानवे में उनकी आधिकारिक जीवनी का लेखन कार्य राजमोहन गांधी ने किया है। हम सभी के प्रिय सरदार वल्लभ भाई पटेल का आख़िरी समय मुम्बई में गुज़रा और वे पंद्रह दिसंबर उन्नीस सौ पचास के दिन हमें छोड़ गए। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए हवन कर दिया खासकर रियासतों के एकीकरण में उनकी रक्तहीन क्रांति की मिसाल हमें सदैव याद रखनी चाहिए। हमें इस सच को अच्छे से कबूलना चाहिए कि आज तेज़ी से विकसित होते भारत की आधारशिला में पटेल के हाथों संपन्न हुआ एकीकरण ही है जो आज तक मजबूत नींव की भूमिका निभा रहा है। उनके बारे में एक बार मैनचेस्टर गार्जियन न्यूजपेपर ने लिखा था कि एक ही व्यक्ति विद्रोही और राजनीतिज्ञ के रूप में कभी-कभी ही सफल होता है परंतू इस सम्बन्ध में पटेल अपवाद थे। सारांश में यही कहा जाएगा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम और आज़ाद भारत की पहली केबिनेट में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका हमेशा स्मरणीय रहेगी।

डालर सोनी

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