जुदा किस्म का स्कूल। (विद्या भवन
स्कूल उदयपुर)
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नमस्ते। मैं बीते दो दशक से अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में मशगूल हूँ।कई संगते
की मगर आज एक बेहद ज़रूरी संगत सम्भव हुई।देशभर में कई नवाचारी क़िस्म के स्कूल सुने
और पढ़ें हैं। कभी कभी उन्हें जानना एक पूरी परंपरा को जानना होता है। भारत में
विभिन्न शोध प्रणालियों के आधार पर विविध कॉन्सेप्ट पर स्कूलिंग के फॉर्मेट आपको
मिल जाएंगे।ग्रामीण स्कूल, सैनिक स्कूल, दिगंतर, स्वराज्य यूनिवर्सिटी, डी स्कूलिंग, बुनियादी स्कूल, रेजिडेंशियल स्कूल, वोकेशनल स्कूल, मुख्य धारा के
स्कूल, सरकारी और गैर सरकारी
स्कूल, कस्तूरबा गांधी।सेवा के
निमित्त भी और मेवा के निमित्त चलाए जाने वाले स्कूल भी।मगर कुछ स्कूलों का कल्चर
अपनी जुदा खुशबू के कारण ख्याति पा जाता है।ऐसी ही तबियत का स्कूल है विद्या
भवन।व्यावसायिकता के भाव से कोसों दूर।निस्वार्थ सेवा को केंद्र रखकर आगे बढ़ता हुआ
स्कूल।ज़माने के हिसाब से अपडेट मगर अंधी दौड़ से अप्रभावित।
माफी चाहूंगा कि इस लेख सरीखी टिप्पणी में आँकड़े शामिल नहीं कर पा रहा
हूँ।आँकड़ों में मेरी रुचि आज कम से कम नहीं है।आज मैं स्कूल पर फिदा हूँ और यह दिल
का मामला है दिमाग का नहीं।अंदाज़े से कहूँ तो शायद 2000 बच्चे पढ़ते होंगे और लगभग डेढ़ सौ का स्टाफ होगा।किसी भी
रूप में यहां प्राइवेट स्कूल का कल्चर नहीं दिखा।बड़ा करीने से सेट किया हुआ
स्ट्रक्चर है इसका।स्कूल में खेती भी होती है और पढ़ाई भी।स्कूल इतना बड़ा है कि
पूछो मत।सारे सेगमेंट देखने बैठो तो एक दिन भी कम पड़ता है।कहना चाहिए कि लगभग 1930 के दशक के इस स्कूल की सैकड़ों अन्तरकथाएँ यहां
मौजूद हैं।हिंदी रचनाकारों और वैज्ञानिकों के स्टेच्यू,पेंटिंग्स के बड़े बड़े कॉलम और दीवारें हमारा ध्यान खींच
लेती है।एकटक देखता रहा।वक़्त कम था बाक़ी एक एक बरगद एक एक उपन्यास की मानिन्द
अनुभव हुआ।
मन में अरसे से था कि विद्या भवन सोसायटी उदयपुर के स्कूल एज्युकेशन पर काम को
नजदीक से समझूं।सोसायटी का लंबा गौरवमयी इतिहास रहा है।हालांकि इस सोसायटी के
संस्थानों में पढ़ने लिखने वाले विद्यार्थी और इनके कार्मिक ही सही आकलन अभिव्यक्त
कर सकते हैं।मैं सिर्फ मेरी अपनी अनुभूति साझा कर रहा हूँ।संस्थापक सदस्यों से
लेकर इनकी विविध संस्थाओं के द्वारा बेहतर समाज को बनाने की इनकी प्रतिबद्धता
जगजाहिर है।उसी के एक स्कूल को देखना आज कुछ सम्भव हुआ।लगा कि यह देश का एक अद्भुत
स्कूल है जिसका बड़ा अदब से नाम लिया जाता है।विद्या भवन सोसायटी का अचरजभरा
स्कूल।लगभग वंचित और मध्यमवर्गीय समाज के बच्चों के लिए सुकूनभरा अध्ययन सुविधा
केंद्र।बहुत कम शुल्क पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।अनुभवी शिक्षक और जांचा परखा
कॉन्सेप्ट। मोहन सिंह मेहता,अनिल बोरदिया,कालूलाल श्रीमाली, जगत मेहता सहित दर्जनों ऐसे नाम है जिन्होंने इसे सींचा
है।बुनियादी शिक्षा से लेकर विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास पर बल देते हुए अपने
काम को अंजाम देता हुआ स्कूल है यह।दे लम्बा इलाका।तमाम सुविधाओं का संचालन और
संधारण।पूर्व विद्यार्थी संगठन औऱ सम्मेलनों की स्वस्थ परंपराएं।
खेलकूद के लिए पर्याप्त स्पेस।व्यावसायिक शिक्षा का शानदार मॉड्यूल।नर्सरी
एज्युकेशन में मोंटेसरी मैथड का क्रियान्वयन।भयमुक्त वातावरण।बच्चों का अध्यापकों
और प्रिंसिपल तक से अनौपचारिक संवाद।गार्डनिंग सिस्टम।म्यूजिक और चित्रकारी जैसे
विषयों पर लगातार काम की गुंजाइश को फोकस में रखा गया है।प्रकृति के बहुत
करीब।महात्मा गांधी के बहुत नजदीक।राष्ट्र सेवा के मूल्य पर केंद्रित। न्यूनतम खर्च
में सहजता के साथ तालीम का विलग सा स्कूल है यह।होस्टल,गार्डन,हॉल की सुविधाओं
सहित शानदार भोजनशालाओं का बेहतर संचालन।
पुलकित और संवेदनशील विद्यार्थी,लगभग उत्सुक और विनयशील अध्यापक अध्यापिकाएं।केम्पस की आनंददायी और मनमोहिनी
फिज़ा।घने पेड़ों के बीच कुछ कुछ दूरी पर बनी इमारतों में जीवंत स्कूल।नमस्ते,गुड मॉर्निंग,हेल्लो करते और नजदीक आ पाँव छूते बच्चे।बाल गीत की आस में
बतियाते नर्सरी के बच्चे।शिक्षण सहायक सामग्री के नाम पर टीएलएम का अंबार।चार्ट और
डिस्प्ले से अटी दीवारें।दुनियाभर की छोटी बड़ी और जंगी गतिविधियां।सबकुछ सहज और
धीरे धीरे।एक लय में चलता हुआ।कोई आपाधापी नहीं है।पारिवारिक माहौल की याद दिलाता
यह अनूठा विद्यालय।
बेहिसाब विस्तार।गंभीरता के साथ जीवन मूल्यों पर केन्द्रण।अनौखी
परंपराएं।हरियाला वातावरण।बरगदों का जाल फैला हुआ है यहां।केंटीन,पार्किंग,ऑडिटोरियम,खेल मैदान,ओपन ऑडिटोरियम,इंडोर स्टेडियम सहित स्टाफ के लिए आवास।नवाचारी
अध्यापक।एकदम नेचुरल।क्या नहीं है यहां।सबकुछ स्वाभाविक।पुस्तकालय संस्कृति का
पूरा पोषण।प्रिंसिपल और मित्र पुष्पराज के मार्फत स्कूल कल्चर को जानने समझने हेतु
एक ज़रूरी संगत।मेले,सेमिनार,रिफ्रेशर कोर्स,कल्चरल इविनिंग, गेम्स,वनशाला में बरती जाने
वाली आत्मीयता और आयोजनों का वीरात स्वरूप।क्या गज़ब कथाएं हैं।यहां पढ़कर देश विदेश
में नाम रोशन करने वाली विद्यार्थी पीढ़ी की एक लंबी लाइन है।बहुत कुछ कहा जा सकता
है।मगर।
जानकर अच्छा लगा कि यहां के स्टूडेंट्स कक्षा 3 से सॉफ्टवेयर में डिकोडिंग सीख रहे हैं।आश्चर्य यह है कि
यहां बच्चे लकड़ी का सुथारी काम भी करते हैं तो वहीं गार्डनिंग और लुहारी काम की भी
गुंजाइश भी रखी हुई है।संस्था का लोगो भी बड़ा रहस्यमयी लगा जिसमें साँप, मोर,पेड़,हाथी,कमल,तालाब है।इस लोगो के कई इंटरप्रिटीशन मिलते हैं।बच्चों की अपनी शाला पंचायत है
जिसमें पूरी की पूरी केबिनेट है।यह केबिनेट अध्यापक साथियों के कंधे से कंधा
मिलाकर चलती है।
मन में यह आस रखकर चला आया कि यह स्कूल फिर देखने का न्योता मिलेगा।फिर कभी और
लिखूंगा।सम्भव हुआ तो इसी बहुत पुराने स्कूल के सबसे युवा प्रिंसिपल का एक वीडियो
इंटरव्यू करके आपके साथ साझा करूँगा। फिलहाल आभारी हूँ और इस अद्भुत अनुभूति और
अहसास से गदगद हूँ।शुक्रिया साथी पुष्पराज।पढ़ने वाले आपको जब भी फुरसत मिले इसे
विजिट करके अनुभव करें।यह तीर्थ है।वार्षिक रूप से लाखों के घाटे के बजट में चलता
हुआ यह स्कूल बड़ा अचरज पैदा करता है।ट्रस्ट के साथियों और एलुमिनी मेंबर को सलाम
है जो इस जुदा किस्म के स्कूल को ज़िंदा रखे हुए है।बिना किसी प्रदूषण के इसे
निभाना कितना मुश्किल रास्ते को अख़्तियार करना है यह आप जान पाएंगे।मेरा अब यह
विचार पक्का बन गया है कि इस स्कूल पर डॉक्यूमेंट्री बननी चाहिए।इसके कॉन्सेप्ट की
बू दूर तक जानी चाहिए।आओ हम कुछ कोशिश करें।अपील करता हूँ कि जो भी वोलंटियर की
भूमिका में यह कार्य करके इस स्कूल के कल्चर का डॉक्यूमेंटेशन कर सके तो स्वागत
है।इस संस्थान को आज अर्थ की भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी मानवीय संसाधनों की।यहां
इतना स्पेस है काम करने का कि क्या कहूँ।जितने भी पूर्व विद्यार्थी हैं अपने अतीत
को याद करते हुए यहां 21 जुलाई को
स्थापना दिवस पर आते ही हैं मगर फिर भी और प्रयास करने की आवश्यकता महसुसी गयी है।
मेरी यह भी एक धारणा बन चुकी है कि हमें अगर हमें अध्यापकी के क्षेत्र में कुछ
नया करना है तो नवाचार करने वाले अध्यापकों की संगत करनी चाहिए।संगत के मौके
ढूंढने होंगे।पता लगाना होगा कि किन इलाकों में कौनसा स्कूल कुछ विशेष गति के साथ
आगे बढ़ रहा है।बस सम्भव होते ही जा धमकिए।एक इंस्पेक्टर की तरह नहीं एक स्टूडेंट
की हैसियत से उस स्कूल को सूंघकर आएं।आपकी ऐसी यात्रा आपको सालभर तरोताज़ा बनाए
रखेगी।कई मर्तबा ऐसा भी होता है कि बहुत दूर इलाकों में बहुत बारीक काम हो रहा
होता है और पर्याप्त गंभीरता से भी मगर पब्लिक डोमेन में उनकी जानकारी नहीं
होती।डॉक्यूमेंटेशन एकदम अलग तरह का काम है।इसकी गति और दिशा पर काम करना ही
होगा।इस तकनीकी सम्पन्न युग में अब डॉक्यूमेंटेशन और उनका प्रदर्शन-प्रचार बहुत
आसान हो गया है।
सन 2000 से अध्यापकी। 2002 से स्पिक मैके आन्दोलन में सक्रीय स्वयंसेवा।2006 से 2017 तक ऑल इंडिया रेडियो,चित्तौड़गढ़ में रेडियो अनाउंसर। 2009 में साहित्य और संस्कृति की ई-पत्रिका अपनी माटी की स्थापना। 2014 में 'चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी' की शुरुआत। 2014 में चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल की शुरुआत। चित्तौड़गढ़ में 'आरोहण' नामक समूह के मार्फ़त साहित्यिक-सामजिक गतिविधियों का आयोजन। 'आपसदारी' नामक साझा संवाद मंच चित्तौड़गढ़ के संस्थापक सदस्य।'सन्डे लाइब्रेरी' नामक स्टार्ट अप की शुरुआत।'ओमीदयार' नामक अमेरिकी कम्पनी के इंटरनेशनल कोंफ्रेंस 'ON HAAT 2018' में बेंगलुरु में बतौर पेनालिस्ट हिस्सेदारी। सन 2018 से ही SIERT उदयपुर में State Resource Person के तौर पर सेवाएं ।
कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर। 'हिंदी दलित आत्मकथाओं में चित्रित सामाजिक मूल्य' विषय पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोधरत।
प्रकाशन: मधुमती, मंतव्य, कृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित।माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं। सम्पर्क-चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान। मो-09460711896, ई-मेल manik@spicmacay.com
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