10 मई 2021
रोज़ाना रात आठ से दस छत ज़िंदाबाद। चटाई, तकिया, मोबाइल, स्पीकर और पानी की बोतल। दिनभर में दिल पर गुज़री की चीरफाड़ करने का सही समय। उस्ताद शाहिद परवेज़ का सितार पर बजाया राग यमन। आलाप से शुरू करते हुए जोड़ झाला से होते हुए तीव्र गत तक। चिंतन और चिंता का मिक्स आलोड़न। कल से तबियत कुछ गड़बड़ है। गर्म पानी में नीबूं, दो टाइम की भाप, एक समय के गरारे, दो कप अदरक छाप चाय और भगवती भाई से भेंट। अब थोड़ा आराम है। हवा बह रही है। गले में थोड़ी सी हरक़त से हज़ार विचार उपजते हैं। बीमारी तो है। लगातार बीस दिन कोविड की ड्यूटी से अब छोटा विराम। सभी साथी कार्मिक खूब दिल से महामारी से लड़ रहे हैं। यथायोग्य। कोई शिकायत नहीं। मास्क, सेनेटाइजर और गलाउज सब खुद से जुटाए। न कोई ज्ञापन दिया न धरना।
विज्ञान वाले विपिन जी माड़साब
प्रकाश संश्लेषण नहीं पढ़ा रहे हैं। वे आजकल चेक पोस्ट पर गांव वालों की आवाजाही पर
निगरानी रखे हैं। अंग्रेजी के जानकार अमर जी कम्प्यूटर पर सर्दी, जुकाम आदि मरीजों के डेटा की फीडिंग। न हिंदी वाले की हिंदी काम आ
रही है न गणित वाले की गणित। कोई मेडिकल किट का आवक जावक कोटा दर्ज करने में
व्यस्त है तो कोई सरकारी फरमान की पूर्ति में खाली फॉर्मेट में आंकड़े सेट कर रहा
है। यह सत्य है कि सरकार के एक एक आदेश की पालना हो रही है। उपखण्ड का जिम्मा एक
युवा अधिकारी के हाथ है। सबकुछ एकदम परफेक्ट।
पंचायत सहायक खुद पॉजिटिव है। एक
अध्यापिका के पिताजी गुज़र गए। एक का बेटा पॉजिटिव है। एक हैडमास्टर संक्रमित हुआ
ही है। एक बीपी शुगर वाले जनाब अभी पूरी तरह से रिकवर नहीं हुए। किसी की मां बीमार
है किसी के पिताजी केंसर से पीड़ित हैं। किसी के श्वसुर एकदम बिस्तर पर हैं। बिना
शिकायत सारे साथी काम करना चाहते हैं। नौकरी से बड़ा दायित्व है। किसी की दादी गुज़र
गयी तो किसी के पिताजी को ज़हरीला जानवर फूँक मार गया। सुना एक का बेटा खासा बीमार
है। कोई उफ़्फ़ तक नहीं कर रहा है। एक की काकीसा दिवंगत हो चली। जितने लोग उनसे तीन
गुनी कहानियां । भोजन का ठिकाना नहीं। स्वास्थ्य जैसे तैसे संभाल रखा है। टीके लगे
न लगे। बागडोर थामे हैं। किसी के घर में ब्याव था। किसी का नसबंदी ऑपरेशन हुआ ही
है।
किताबें पढ़ने की अब बिल्कुल इच्छा नहीं होती। सरकारी कामकाज की शैली पर दोपहर में प्रवीण से लंबी बात हुई। यही तसल्ली है। कोई बीमे के भरोसे है। कोई शरीर की नश्वरता स्वीकार चुका है। कोई टीवी टांड पर रख निश्चिन्त। कई मित्र अरसे से पड़ी हुई पीएचडी थीसिस को निबटा रहे हैं। बीते साल मैंने और मैना सहित कई साथियों ने कोरोना काल का शानदार उपयोग किया। गीता, हेमलता, जय प्रकाश, मनीषा सहित सभी डॉक्टर हो गए। अभी विजय लिख रहा है। सांवर अपने इंटरव्यू के इंतज़ार में है। मन बहलाने की इन सभी बातों के बीच यह सत्य है कि टीकाकरण धीमा है। अस्पताल हाँप रहे हैं। डॉक्टर सीमा से कई गुना ज्यादा घण्टे लगे हुए हैं। आंकड़े कुछ आस जगा रहे हैं। मगर स्वास्थ्य कार्यकर्ता बिना पी पी ई किट लगातार गाँव की सेवा कर रही है। मैं भी बहुत कुछ नहीं लिख पाने के दबाव से रोज़ आपसे इधर उधर की बातें करके काम निबटा रहा हूँ। कल डायरी नहीं लिखी। हिम्मत नहीं थी। हाँ कल मुकेश, किशोर और रफ़ी ने बहुत साथ दिया। दूर से ही सही मुस्कराते रहिएगा। ऑक्सीजन खाली सिलेंडर में ही नहीं पाई जाती।
कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर। 2020 में 'हिंदी दलित आत्मकथाओं में चित्रित सामाजिक मूल्य' विषय पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोध।
प्रकाशन: मधुमती, मंतव्य, कृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित।माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं। सम्पर्क-चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान। मो-09460711896, ई-मेल manik@spicmacay.com
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