जीवन के इस मेले में
बन मुसाफिर देखा सब
देखे कई भान्त के लोग
पगड़ी बिन पगड़ी
लुगड़ी बिन लुगड़ी
इसी धुपीली सड़क पर
देखे आते-जाते सब
जीवन के इस मेले में
हाथों-टांगों से दौड़ते
कोई लंगडाते-हांपते
सरकाते बेरिंग गाड़ी
देखे आते-जाते सब
बेवजह अकड़ाए लोग
लुड़कते-घसीटते वे
पलपल कोसते जीवन
फुर्र से उड़ते-फुदकते
देखे आते-जाते सब
बदलाते गिरगिटी लोग
कोई गले मिल खिलता
कोई सूरत देख छिपता
मिले लोग ऐसे-वैसे सारे
जांचे-परखे तो फेल हुए
नकलची-नाटकबाज़ लोग
रुक कर भी क्या करूँ ?
इस स्वार्थी रंगमंच पर
जी बहलाते खेल जहां है
यही बात सोच,ठिठका
फिर चल पड़ा राह पर
और सोचता ही रहा मैं
यूं आते-जाते ढूँढता ज़वाब
जीवन में सालते प्रश्नों के
यायावरी निरुत्तर जिन पर
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