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26 मई, 2011

आते-जाते इस जीवन में

जीवन के इस मेले में
बन मुसाफिर देखा सब
देखे कई भान्त के लोग

पगड़ी बिन पगड़ी
लुगड़ी बिन लुगड़ी 
इसी धुपीली सड़क पर 

देखे आते-जाते सब
जीवन के इस मेले में 



हाथों-टांगों से दौड़ते
कोई लंगडाते-हांपते
सरकाते बेरिंग गाड़ी

देखे आते-जाते सब
बेवजह अकड़ाए लोग  


लुड़कते-घसीटते वे 
पलपल कोसते जीवन   
फुर्र से उड़ते-फुदकते

देखे आते-जाते सब
बदलाते गिरगिटी लोग


कोई गले मिल खिलता
कोई सूरत देख छिपता 
मिले लोग ऐसे-वैसे सारे 

जांचे-परखे तो फेल हुए 
नकलची-नाटकबाज़ लोग 

रुक कर भी क्या करूँ ?
इस स्वार्थी रंगमंच पर
जी बहलाते खेल जहां है  

यही बात सोच,ठिठका 
फिर चल पड़ा राह पर
और सोचता ही रहा मैं

यूं आते-जाते ढूँढता ज़वाब
जीवन में सालते प्रश्नों के
यायावरी निरुत्तर जिन पर   

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