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13 अगस्त, 2011

अन्ना हजारे को समर्पित एक कविता

कितना ज़रूरी है हस्तक्षेप
व्यवस्था में इस दौर 
फटती पेंट के पिछवाड़े
लगे ठेगरे की मानिंद

सोचना निहायत ज़रूरी है 
अटरम-शटरम के आलम में
छानी हुई चाय की मानिंद
फिर बैखोफ लेना चुस्कियां 

कितनी ज़रूरी हो गयी है 
असल की पहचान और 
नक़ल को नकारना यूं
छाजले से कंकडों को पारना

कितना ज़रूरी है ऊंची उठती
हवेलियों को यथासमय छांगना
सौ गालियों को पारते 
शिशुपाल वधने की मानिंद

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