माणिक: आन्दोलन में आपकी शुरूआत।
अशोक जैन: जयपुर में कोलेज की पढ़ाई के शुरूआती दिनों में स्पिक मैके जहां एक फैशन के तौर पर आया था, उन्हीं दिनों मेरा जुड़ाव हुआ। जब सदस्य होना बड़ी बात होती थी, कुछ मित्रों की संगत मिलेगी यही प्रलोभन मुझे स्पिक मैके में खींच लाया।
माणिक: पहला कार्यक्रम जो आपको प्रभावित कर गया।
अशोक जैन: हिन्दुस्तान के प्रख्यात बांसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चैरसिया के कार्यक्रम को सुनने के बाद उनके बजाये सुरों के साथ मेरा जुड़ाव लम्बे समय तक बना रहा। वहीं मेरे जीवन का एक ऐसा मुड़ाव था जो मुझे इस गैर राजनैतिक और छात्र सहभागिता वाले आन्दोलन में ले आया।
माणिक: आन्दोलन की अब तक की 32 वर्षीय यात्रा पर आपके विचार।
अशोक जैन: आन्दोलन के प्रति सबका अपना व्यक्तिगत अनुभव होता है। मेरी कहूं तो स्पिक मैके मेरी जरूरत है, इसके जरिये संस्कृति और कला से जुड़े ऐसे अनुठे अनुभव देख पाया हूं, जो मुझे बहुत प्रभावित कर गये। पुणे अधिवेशन के दौरान 18 वर्ष पहले गुरू अम्मानुर माधव चाक्यार द्वारा ‘पुतनावधम्’ की प्रस्तुति में दोनों आखों से अलग-अलग भाव दर्शाने वाला दृश्य मुझे आज तक याद है। एक ही समय में राक्षसी और मातृत्व की भावना वाला अभिनया प्रेरित करने वाला था। साथ ही कोटा में पं. बिरजु महाराज का मयुर नृत्य, विदुषी गंगुबाई हंगल का आलाप मुझे आन्दोलन के प्रति आसक्ति पैदा करने को कह रहा था। देश में कई ऐसी विभूतियां है जैसे घनाकांता वौरा, रामकैलाश यादव और तीजन बाई जैसे साधारण कलाकार है जो अपनी एक बार की मुलाकात में ही विद्यार्थियों में बहुत सारी ऊर्जा उडेल देने की हिम्मत रखते है, उनका सानिध्य हमें एक संवेदनशील व्यक्तित्व की ओर बढ़ने में सहायता करता है।
माणिक: किन मूल सिद्धांतों पर आन्दोलन टीका हुआ है?
अशोक जैन: हमारा आन्दोलन 32 वर्ष पहले जिन सिद्धान्तों को लेकर चला था उन पर आज भी कायम है। कुछ बरस पहले विदुषी अश्विनीभीड़े देशपाण्डे के शास्त्रीय गायन के एक कार्यक्रम में शुरूआत में आलाप पर काॅलेज की छात्राओं को हंसते हुए देखा था, लेकिन वे ही छात्राएं बाद में रोई भी थी। ऐसे ही कुछ अनुभव है जो आन्दोलन के प्रति हमें आकर्षित करते हैं।
माणिक: युवाओं पर पश्चिमी प्रभाव में आने का आरोप है, आप क्या कहते हैं?
अशोक जैन: पश्चिमी संगीत कुछ इस तरह का है जो युवाओं को जल्दी आकर्षित करता है। मगर दूसरी तरफ इन दिनों जो युवा, आईएएस और प्रशासनिक पदों पर आ रहे हैं। उनका शास्त्रीय संगीत के साथ साथ कला और संस्कृति के विविध आयोजनों के प्रति स्वतः आगे होकर सहयोग करने की भावना हमें यह निष्कर्ष दे जाती है कि युवाओं में एक बदलाव आ रहा है। मन करता है बस किसी भी प्रकार के योगदान की वजह से देश की विराटता को देखते हुए आन्दोलन का अब तक का प्रभाव पांच गुना हो जाए। बदलाव तो आया है, आशा की किरण भी जगी है। कोलेज और स्कूल के विद्यार्थी जुड़ भी रहे हैं।
माणिक: दिग्गज कलाकारों के साथसाथ युवा कलाकारों की बढ़ती हुई प्रस्तुतियों पर आपके विचार।
अशोक जैन: युवा कलाकारों में भी ऊर्जा बहुत है। सही तरीके से संगीत को सीखे हुए कलाकार बड़े साधकों की तुलना में कुछ तो है, आज के समय में व्यावसायिकता के साथ अन्य आकर्षण भी हावी है। ऐसे में बड़े गुरुओं की कम तिथियां मिल पाती है, उनकी कमी अनुभव भी होती है।
माणिक: वे अनौपचारिकताएं जो आन्दोलन को थामे हैं।
अशोक जैन: आन्दोलन में आने पर फाॅर्म भरने और फीस जमा करवाने जैसी कोई औपचारिकता नहीं है। औपचारिकताएं है भी मगर ज्यादा जरूरी यह है कि आप कोई कार्यक्रम देखें और उससे प्रभावित होकर आन्दोलन के प्रति स्वयं की ओर से निष्काम कर्म की भावना के जरिये कुछ करने की सोचे। आपका इस तरह का योगदान उस स्वतः प्रक्रिया के बराबर है जो आन्दोलन से जोड़ देती हैं। आन्दोलन की एक खास विशेषता यह है कि जिसका जितना योगदान है उसको उसी के अनुसार पहचान भी दी जाती है। आन्दोलन का स्वरूप इस प्रकार का है कि युवा आते हैं, कुछ बरस तक काम करते हैं, फिर वे अपने केरियर में लग जाते हैं। और उनकी जगह पर दूसरे युवा आ जाते हैं। एक अरसे के बाद जब वे कैरियर में स्थापित हो जाते हैं तो फिर से आन्दोलन में आ जुड़ते हैं। यही प्रक्रिया आन्दोलन को दीर्घकालीन बनाए हुए हैं।
माणिक: इतने व्यस्ततम समय में आप सपरिवार किस तरह से सतत् जुड़ाव बनाए हुए हैं?
अशोक जैन: प्रतिदिन सुबह एक घंटे का योग मुझे दिन भर के लिए किये जाने वाले कार्यों के प्रति व्यवस्थित कर देता है। समय तो मैं अपने आप ही निकाल लेता हूं। स्पिक मैके, वैसे भी अभी मेरी जरूरत है, इस तरह स्पिक मैके के कार्यक्रमों के जरिये मिलने वाली उर्जा से मैं अपने व्यवसाय, परिवार और दूसरी चीजों के लिए भी समय निकाल लेता हूं।
माणिक: आन्दोलन में रहते हुए आपकी आकांक्षा।
अशोक जैन: बहुत पहले का मेरा सोच जिसमें देश के बड़े और दिग्गज कलाकारों की प्रस्तुतियाँ तो हो रही है। लेकिन सीखने हेतु छोटे शहरों में संगीत और कला से जुड़े हुए गहरी समझ वाले शिक्षकों का अभाव है। ऐसे में इन बड़े गुरुओं के अच्छी तालीम लिए शिष्यों के जरिये राजस्थान के साथ साथ पूरे देश में कार्यशालाएं आयोजित की जाए और विद्यार्थी इन अल्पकालिक कार्यशालाओं के जरिये संगीत शास्त्रीय और लोक विरासत के इन विधाओं से परिचित हो पाएं। देश भर में इस तरह की मासिक कक्षाओं को हम यदि कुछ हद तक भी आकार दे पाएं तो बहुत खुशी होगी।
माणिक: अब तक की 32 वर्षीय यात्रा आपकी नजर में कैसी रही?
अशोक जैन: आन्दोलन में सफलता को नापने जैसी कोई बात न करके, इसकी निरन्तरता से हम प्रभावित हों, और बस अपने काम में लगे रहे, इसी में एक अच्छाई है। अभी तो हमें बहुत आगे जाना है। फिलहाल तो हम चलना सीखें है। अभी तो बढ़ना और दौड़ना भी है। इस बड़े प्रकल्प में हमारे साथ यदि सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठान, औद्योगिक प्रतिष्ठान और शैक्षणिक संस्थान साथ जुड़े तो यात्रा और भी आसान होगी।
माणिक: स्पिक मैके द्वारा शिक्षण संस्थानों में आयेाजित प्रस्तुतियां और स्पिक मैके फाउण्डेशन की सामाजिक प्रस्तुतियां। दोनों पर आपकी प्रतिक्रिया।
अशोक जैन: स्कूल और काॅलेज के छोटे से हाॅल में देश के बड़े कलासाधकों की अनौपचारिक प्रस्तुतियां बहुत अद्भूत वातावरण तैयार करती हैं। कलाकारों के लिए भी इस तरह के वातावरण में संगीत की जानकारी से बिलकुल अनभिज्ञ विद्यार्थियों के बीच अपना कार्यक्रम देना होता है। ऐसे में विद्यार्थियों को आकर्षित करना कठिन कार्य है। आत्मिक शांति और संतोष का अनुभव तो ऐसी प्रस्तुतियों में ही होता है लेकिन साथ ही स्पिक मैके फाउण्डेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम भी हमारी कुछ हद तक जरूरत है, इनके जरिये हम अभिभावकों और समाज तक भी आन्दोलन को फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
माणिक: अभिभावकों की भूमिका पर विचार।
अशोक जैन: जितनी भी गहरी चीजें है, ऐसी चीजें है जो बच्चों को अपने अंदर झांकने के लिए प्रेरित करें, जो उनमें बहुत ज्यादा बदलाव लाने वाली हो, ऐसी चीजों को सीखाने व सीखने में थोड़ा वक्त लगता है, जैसे शास्त्रीय संगीत को सीखाने के बदलें अभिभावकों को अपने बच्चों को स्टेज प्रस्तुतियों के लिए तैयार करने की जल्दबाजी बिलकुल गलत होती है। कुछ कलाएं ऐसी होती है जो केवल स्वयं के शुद्धीकरण या अपने अंदर झांकने के लिए प्रेरित करने वाली होती है। साथ ही ये कलाएं स्वयं को बेहतर तरीके से संवेदनशील भी बनाती है। ऐसे में अभिभावकों को थोड़ा धैर्यवान होने की जरूरत है। अभिभावक अपने परिवार में एक ऐसा वातावरण तैयार करें जैसे घर में प्रातःकालीन और सायंकालीन रागों वाली कैसेट या सीडी सुनाएं और सुने तो परिवार जन के बीच ये छोटे छोटे प्रयास सुन्दर मसन्वय तैयार करेंगे।
माणिक: पाठकों के लिए आपका संदेश।
अशोक जैन: सभी पाठकगण अपने जीवन में सब कुछ करें, जो सपने उन्होंने देखें है, उन्हें पूरा करें लेकिन साथ ही साथ एक ऐसा काम करें जिसमें वे निष्काम कर्म की भावना के साथ समर्पित हों, साथ ही और हमारे देश की जो विराट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है, उसको कम से कम देखें तो सही। इतना ही बहुत कुछ है, जो उनके जीवन में बदलाव लाएगा। उन्हें अधिक संवेदनशील व्यक्तित्व देगा।
माणिक: आपने हमारे लिए समय निकाला, आपका बहुत आभार।
अशोक जैन: आपका भी बहुत धन्यवाद।
अशोक जैन |
माणिक: पहला कार्यक्रम जो आपको प्रभावित कर गया।
अशोक जैन: हिन्दुस्तान के प्रख्यात बांसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चैरसिया के कार्यक्रम को सुनने के बाद उनके बजाये सुरों के साथ मेरा जुड़ाव लम्बे समय तक बना रहा। वहीं मेरे जीवन का एक ऐसा मुड़ाव था जो मुझे इस गैर राजनैतिक और छात्र सहभागिता वाले आन्दोलन में ले आया।
माणिक: आन्दोलन की अब तक की 32 वर्षीय यात्रा पर आपके विचार।
अशोक जैन: आन्दोलन के प्रति सबका अपना व्यक्तिगत अनुभव होता है। मेरी कहूं तो स्पिक मैके मेरी जरूरत है, इसके जरिये संस्कृति और कला से जुड़े ऐसे अनुठे अनुभव देख पाया हूं, जो मुझे बहुत प्रभावित कर गये। पुणे अधिवेशन के दौरान 18 वर्ष पहले गुरू अम्मानुर माधव चाक्यार द्वारा ‘पुतनावधम्’ की प्रस्तुति में दोनों आखों से अलग-अलग भाव दर्शाने वाला दृश्य मुझे आज तक याद है। एक ही समय में राक्षसी और मातृत्व की भावना वाला अभिनया प्रेरित करने वाला था। साथ ही कोटा में पं. बिरजु महाराज का मयुर नृत्य, विदुषी गंगुबाई हंगल का आलाप मुझे आन्दोलन के प्रति आसक्ति पैदा करने को कह रहा था। देश में कई ऐसी विभूतियां है जैसे घनाकांता वौरा, रामकैलाश यादव और तीजन बाई जैसे साधारण कलाकार है जो अपनी एक बार की मुलाकात में ही विद्यार्थियों में बहुत सारी ऊर्जा उडेल देने की हिम्मत रखते है, उनका सानिध्य हमें एक संवेदनशील व्यक्तित्व की ओर बढ़ने में सहायता करता है।
माणिक: किन मूल सिद्धांतों पर आन्दोलन टीका हुआ है?
अशोक जैन: हमारा आन्दोलन 32 वर्ष पहले जिन सिद्धान्तों को लेकर चला था उन पर आज भी कायम है। कुछ बरस पहले विदुषी अश्विनीभीड़े देशपाण्डे के शास्त्रीय गायन के एक कार्यक्रम में शुरूआत में आलाप पर काॅलेज की छात्राओं को हंसते हुए देखा था, लेकिन वे ही छात्राएं बाद में रोई भी थी। ऐसे ही कुछ अनुभव है जो आन्दोलन के प्रति हमें आकर्षित करते हैं।
माणिक: युवाओं पर पश्चिमी प्रभाव में आने का आरोप है, आप क्या कहते हैं?
अशोक जैन: पश्चिमी संगीत कुछ इस तरह का है जो युवाओं को जल्दी आकर्षित करता है। मगर दूसरी तरफ इन दिनों जो युवा, आईएएस और प्रशासनिक पदों पर आ रहे हैं। उनका शास्त्रीय संगीत के साथ साथ कला और संस्कृति के विविध आयोजनों के प्रति स्वतः आगे होकर सहयोग करने की भावना हमें यह निष्कर्ष दे जाती है कि युवाओं में एक बदलाव आ रहा है। मन करता है बस किसी भी प्रकार के योगदान की वजह से देश की विराटता को देखते हुए आन्दोलन का अब तक का प्रभाव पांच गुना हो जाए। बदलाव तो आया है, आशा की किरण भी जगी है। कोलेज और स्कूल के विद्यार्थी जुड़ भी रहे हैं।
माणिक: दिग्गज कलाकारों के साथसाथ युवा कलाकारों की बढ़ती हुई प्रस्तुतियों पर आपके विचार।
अशोक जैन: युवा कलाकारों में भी ऊर्जा बहुत है। सही तरीके से संगीत को सीखे हुए कलाकार बड़े साधकों की तुलना में कुछ तो है, आज के समय में व्यावसायिकता के साथ अन्य आकर्षण भी हावी है। ऐसे में बड़े गुरुओं की कम तिथियां मिल पाती है, उनकी कमी अनुभव भी होती है।
माणिक: वे अनौपचारिकताएं जो आन्दोलन को थामे हैं।
अशोक जैन: आन्दोलन में आने पर फाॅर्म भरने और फीस जमा करवाने जैसी कोई औपचारिकता नहीं है। औपचारिकताएं है भी मगर ज्यादा जरूरी यह है कि आप कोई कार्यक्रम देखें और उससे प्रभावित होकर आन्दोलन के प्रति स्वयं की ओर से निष्काम कर्म की भावना के जरिये कुछ करने की सोचे। आपका इस तरह का योगदान उस स्वतः प्रक्रिया के बराबर है जो आन्दोलन से जोड़ देती हैं। आन्दोलन की एक खास विशेषता यह है कि जिसका जितना योगदान है उसको उसी के अनुसार पहचान भी दी जाती है। आन्दोलन का स्वरूप इस प्रकार का है कि युवा आते हैं, कुछ बरस तक काम करते हैं, फिर वे अपने केरियर में लग जाते हैं। और उनकी जगह पर दूसरे युवा आ जाते हैं। एक अरसे के बाद जब वे कैरियर में स्थापित हो जाते हैं तो फिर से आन्दोलन में आ जुड़ते हैं। यही प्रक्रिया आन्दोलन को दीर्घकालीन बनाए हुए हैं।
माणिक: इतने व्यस्ततम समय में आप सपरिवार किस तरह से सतत् जुड़ाव बनाए हुए हैं?
अशोक जैन: प्रतिदिन सुबह एक घंटे का योग मुझे दिन भर के लिए किये जाने वाले कार्यों के प्रति व्यवस्थित कर देता है। समय तो मैं अपने आप ही निकाल लेता हूं। स्पिक मैके, वैसे भी अभी मेरी जरूरत है, इस तरह स्पिक मैके के कार्यक्रमों के जरिये मिलने वाली उर्जा से मैं अपने व्यवसाय, परिवार और दूसरी चीजों के लिए भी समय निकाल लेता हूं।
माणिक: आन्दोलन में रहते हुए आपकी आकांक्षा।
अशोक जैन: बहुत पहले का मेरा सोच जिसमें देश के बड़े और दिग्गज कलाकारों की प्रस्तुतियाँ तो हो रही है। लेकिन सीखने हेतु छोटे शहरों में संगीत और कला से जुड़े हुए गहरी समझ वाले शिक्षकों का अभाव है। ऐसे में इन बड़े गुरुओं के अच्छी तालीम लिए शिष्यों के जरिये राजस्थान के साथ साथ पूरे देश में कार्यशालाएं आयोजित की जाए और विद्यार्थी इन अल्पकालिक कार्यशालाओं के जरिये संगीत शास्त्रीय और लोक विरासत के इन विधाओं से परिचित हो पाएं। देश भर में इस तरह की मासिक कक्षाओं को हम यदि कुछ हद तक भी आकार दे पाएं तो बहुत खुशी होगी।
माणिक: अब तक की 32 वर्षीय यात्रा आपकी नजर में कैसी रही?
अशोक जैन: आन्दोलन में सफलता को नापने जैसी कोई बात न करके, इसकी निरन्तरता से हम प्रभावित हों, और बस अपने काम में लगे रहे, इसी में एक अच्छाई है। अभी तो हमें बहुत आगे जाना है। फिलहाल तो हम चलना सीखें है। अभी तो बढ़ना और दौड़ना भी है। इस बड़े प्रकल्प में हमारे साथ यदि सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठान, औद्योगिक प्रतिष्ठान और शैक्षणिक संस्थान साथ जुड़े तो यात्रा और भी आसान होगी।
माणिक: स्पिक मैके द्वारा शिक्षण संस्थानों में आयेाजित प्रस्तुतियां और स्पिक मैके फाउण्डेशन की सामाजिक प्रस्तुतियां। दोनों पर आपकी प्रतिक्रिया।
अशोक जैन: स्कूल और काॅलेज के छोटे से हाॅल में देश के बड़े कलासाधकों की अनौपचारिक प्रस्तुतियां बहुत अद्भूत वातावरण तैयार करती हैं। कलाकारों के लिए भी इस तरह के वातावरण में संगीत की जानकारी से बिलकुल अनभिज्ञ विद्यार्थियों के बीच अपना कार्यक्रम देना होता है। ऐसे में विद्यार्थियों को आकर्षित करना कठिन कार्य है। आत्मिक शांति और संतोष का अनुभव तो ऐसी प्रस्तुतियों में ही होता है लेकिन साथ ही स्पिक मैके फाउण्डेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम भी हमारी कुछ हद तक जरूरत है, इनके जरिये हम अभिभावकों और समाज तक भी आन्दोलन को फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
माणिक: अभिभावकों की भूमिका पर विचार।
अशोक जैन: जितनी भी गहरी चीजें है, ऐसी चीजें है जो बच्चों को अपने अंदर झांकने के लिए प्रेरित करें, जो उनमें बहुत ज्यादा बदलाव लाने वाली हो, ऐसी चीजों को सीखाने व सीखने में थोड़ा वक्त लगता है, जैसे शास्त्रीय संगीत को सीखाने के बदलें अभिभावकों को अपने बच्चों को स्टेज प्रस्तुतियों के लिए तैयार करने की जल्दबाजी बिलकुल गलत होती है। कुछ कलाएं ऐसी होती है जो केवल स्वयं के शुद्धीकरण या अपने अंदर झांकने के लिए प्रेरित करने वाली होती है। साथ ही ये कलाएं स्वयं को बेहतर तरीके से संवेदनशील भी बनाती है। ऐसे में अभिभावकों को थोड़ा धैर्यवान होने की जरूरत है। अभिभावक अपने परिवार में एक ऐसा वातावरण तैयार करें जैसे घर में प्रातःकालीन और सायंकालीन रागों वाली कैसेट या सीडी सुनाएं और सुने तो परिवार जन के बीच ये छोटे छोटे प्रयास सुन्दर मसन्वय तैयार करेंगे।
माणिक: पाठकों के लिए आपका संदेश।
अशोक जैन: सभी पाठकगण अपने जीवन में सब कुछ करें, जो सपने उन्होंने देखें है, उन्हें पूरा करें लेकिन साथ ही साथ एक ऐसा काम करें जिसमें वे निष्काम कर्म की भावना के साथ समर्पित हों, साथ ही और हमारे देश की जो विराट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है, उसको कम से कम देखें तो सही। इतना ही बहुत कुछ है, जो उनके जीवन में बदलाव लाएगा। उन्हें अधिक संवेदनशील व्यक्तित्व देगा।
माणिक: आपने हमारे लिए समय निकाला, आपका बहुत आभार।
अशोक जैन: आपका भी बहुत धन्यवाद।
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