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11 मई, 2012

11-05-2012


 आज बहुत आत्मीयस्वभाव केधनी जे.एन.यूंसे समाजशास्त्रमें एम्.. कियेफेसबुकी मित्रविनोद कुमारमल्होत्रा से मिलने जाना हुआ.परिणाम हमेशाकी तरहएक समानतालिए हुएथा,यानीजब भीफेसबुकी मित्रमिलें बहुतसचाई केसाथ मिले।मतलबइस गैरआभासी इंटरनेटीयुग मेंभी आत्मीयताप्रधान लोगज़िंदा है।बहुतव्यस्त होनेके बावजूदउनका मेरेलिए तमामज़रूरी बातेंकरने केलिए वक़्तनिकालना सुखदायकलगा.एकतो वेभीलवाड़ा केनिकले जहांमेरा ननिहालहै.दूजेवे लिखने,पढ़ने औरनाट्य मंचनमें रुचिशीलयुवा हैं.हम दोनोंने उनकेऑफिस मेंही जहांवे सबरजिस्ट्रार के पद पर चित्तौड़तहसील संभालतेहैं,एकदूजे केबारे मेंजाना.एकनिचोड़ निकालायह भीकि कभीकभी प्रशासनमें भीअच्छे लोगमिलते हैं.......

विनोद बाबू सेमिलकर बहुतआनंद आया।एकचाय केसाथ हीबीच बीचमें कुशलअधिकारी कीतरह वे  अपना काम निबटातेरहे।फोन-फानपर बतियातेरहे।बातों के बीच पता लगा, उनका ससुरालचित्तौड़ मेंहैं।कुछ सालपहले अपनीरुचिवश वेदो सालब्यावर केएक कोलेजमें समाजशात्रपढ़ा चुकेहै।फिर वायापुलिस कीनौकरी वेआर।टी.एस।में चयनितहोकर यहींचित्तौड़ मेंनायब तहसीलदारबने ।हालमें मिलेप्रमोशन केबाद अबट्रांसफर कीबारी मेंहैं।नेट उत्तीर्णविनोद जीबहुत उत्साहीकिस्म केव्यक्ति हैंमगर सरकारीनौकरी केचलते अपनीतमाम इच्छाओंके मरजाने यादब जानेसे दुखीनज़र आये।कुछबातें उन्होंनेमेरे बारेंमें भीबहुत उत्सकुताके साथपूछी।मुझे उनमें एक अधिकारी केतरह  टेंट नज़र नहीं आये।

आज घंटे भरकी मुलाक़ातहमारी रेनूदीदी सेभी हुयीजो कुछमहीनों सेडॉ.रेनूव्यास होगयी है।उनकेशोध कोकिताब रूपमें छापाजा रहाहै।वो भीशायद उदयपुरके अंकुरप्रकाशन द्वारा।किताबअभी आनाबाकी है।उत्साहबरकरार है।असलमें मैंफोन काबिल जमाकराने गयाथा।तय समयसे देरतक ख़त्महोने कीआदत वालेसरकारी विभागोंके लंचके ख़त्महोने तकरेनू दीके पासबैठ आया।आकाशवाणीचित्तौड़ परएक हीफिल्म सेमेरे पिछलेदिनों प्रसारितएक प्रोग्राममें गाइडफिल्म परबात चली।उन्होंनेने बहुतविस्तार सेफिल्म परअपना नज़रियाप्रकट कियावो भीपूरे रुचिकरढंग से।वेमानती है, गाइड जैसीफिल्म मेंपहला आधाभाग वहीदारहमान केअभिनय कोदेखने केलिए हैबाकी आधाभाग देवानंदकी एक्टिंगसे मुखातिबहोने केलिए।अपने पसंदकी फ़िल्मेंगिनाती हुईरेनू दीप्यासा,दोबीघा ज़मीन,तीसरी कसमतकभी हो गयी।आज हीजाना ,रेनूजी रेखाचित्रभी बनातीहै।ये अलगबात हैउन्होंने बहुतसालों सेरेखाचित्र बनाए नहीं।कई बार वेफिल्म मेंअभिनेत्री की आँखें देखने केलिए घंटोंतक फिल्मदेखती है।आँखेंदेखते समयनाक तकभी उनकीनज़र नहींजाती इतनेध्यान केसाथ।वे कहतीहै,लिखनेके काममें हमेशाबहुत ध्यानचाहिए होताहै।श्रमसाध्य और समयसाध्य काम है।कभीकभी लिखनेके वक़्तबुखार आनेजैसा लगताहै।पसीना तोआता हीहै।फिर चाहेवो आलेखहो याफिर कवितालेखन।उनके इस विचार को तबऔर पुटमिला जबदिनकर केसंस्मरण पढ़तेसमत दिनकरद्वारा भी  ऐसा ही कुछलिखा मिला।

आज की डायरीमें एकसाम्य येभी है,रेनू जीऔर विनोदजी दोनोंएक हीबेच केप्राशासनिक अधिकारी हैं।युवा है।बड़ी सोचके साथनौकरी मेंआए हैं।पर्याप्तउत्साह है।मुझेआज कीदिनचर्या मेंदोनों नेबहुत अपीलकिया है।



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