कर्नाटक के लिए रवाना होना है.सभी हमउम्र दोस्तों के साथ ट्रेन का लंबा सफ़र,सीमारहित घपशप,बेरोकटोक के गुज़रने वाला लंबा वक्त,मुम्बई में सात घंटे,फिर कोंकण रेलवे का आनंद,कर्नाटक के समुद्र किनारे का आनंद,मुख्य तौर पर एक राष्ट्रीय समारोह में विरासत दर्शन से भरपूर अनुभव,कोलेज केम्पस में रहने का मौक़ा,फिर से बिंदास कोलेज के दिन याद करने की बारी,उत्साह उमड़ रहा है,पिछले बारह सालों के के साथियों से बतियाने के का बहुत दिनों बाद मिलने वाला एक ज़बर मौक़ा,आते में साईं बाबा के दर्शन,अजन्ता की गुफाओं में कूदा-फांदी,और आखिर में वाया इंदोर/भोपाल अपने चित्तौड़.. मन हुआ तो अपने दोस्त अशोक जमनानी के घर होशंगाबाद का चक्कर भी जहां अब मुझे अशोक से ज्यादा नर्मदा जी का बहाव बुलाता है.......
19 मई, 2012
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