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16 जून, 2012

16-06-2012

अपना प्रिय काम भी कभी कभार गोरी चिट्टी प्रेमिका सा लगता है।काम के बीच में अचानक उसकी याद हमारे केंद्र में आ बैठती है।कुछ देर दिल बहलाकर हम उसे सहसा वहीं छोड़ आगे बढ़ जाते हैं।सपनों का कम्बल हटा यथार्थ के धरातल पर लौट आते हैं।आज महीनेभर बाद आकाशवाणी की ड्यूटी है।लग रहा है मानो अभ्यास की मानिंद कलाएं हमेशा कुछ अंतराल के बाद भी नए काम को सिखने की मानिंद लगने लगती है।अनचाहा संकोच,घर बना लेता है।देखो ना आज फिर माईक्रोफोन से मुलाक़ात होनी है।मगर जेहन में उत्साह के साथ संकोच मिश्रित है।काश माईक्रोफोन स्त्रीलिंग होता,तो आम राय की तरह मन में इतना डर नहीं रहता .

बीते तीस दिन में से पंद्रह दिन यात्रा की तैयारियों में निकले,बाकी घुमक्कड़ी में .स्पिक मैके के कर्ताधर्ता डॉ. किरण सेठ हमेशा कहते हैं जीवन में एक सालाना आयोजन ऐसा प्लान करो कि  हम खुद के लिए सप्ताह भर निकाल सके।इसी लकीर पर चलता हुआ मैं अब तक बनारस, मनिपाल, जम्मू, कोहिमा, कानपुर, सुरतकल, मुम्बई, गाजियाबाद, दमोह, जयपुर में नितांत खुद के हित समय गुज़ार पाया।खुद में कुछ अनुभव का आभास इसी की बदौलत है।तभी तो संस्कृति के टोपिक को मैं घंटों घसीट सकता हूँ।युवाओं को देखते ही बात-विचार के लिए टूट पड़ता हूँ।किताबों के चयन की आदत यूंही करते करते सीखी है।इस बीच मिली संगतों ने मुझे बहुत से लखण दिए हैं।देर तक प्रकृति को निहारना और विचार की छाछ बिलोते हुए निष्कर्ष जैसे मख्खन को मुफ्त में बाँट देना अपने दिल फेंक दोस्तों से ही सीखा है।

सालाना आयोजन के बहाने आदत पड़ चुकी है जहां प्रकृति भ्रमण के लिए ज़बान चटकारी करार दे दी गयी है,और अब एकाध दिन छोड़ के ही मैं अपने शहर के आस-पड़ौस में जा आता हूँ। थोड़ी सी घुमक्कड़ी वो भी गृहस्थ जीवन में ,बहुत मेनेज करने का मामला है।रोज सवेरे उठ गंभीरी नदी के सहारे घुमने निकल जाता हूँ।अपने सूखे पेटे वाली नदी से बातें करता हूँ। वो अक्सर चुप रहती है।सारे सवाल मेरे होते हैं और ज़वाब भी मेरे ही होते हैं।रास्ते में पड़ते कई सारे नुकीले पत्थरों पर संभल कर चलता हूँ।झाड़ियाँ और काँटों भरे पेड़ों के बीच यही नदी जाने कैसे सालभर बहती है।वो भी चुपचाप।सलाम है इसके धैर्य को।नदी के दु:खड़े कम करने का माद्दा भला मुझमें कहा?,रहा सहा मैं अपने दुःख उसे दे आता हूँ।इन सभी के बीच भी उसका सदा मुस्कराता चेहरा कितना कुछ कहता है।मैं भी बिना कहे बहुत कुछ सीख आता हूँ।जब भी जाता हूँ।ये लेनदेन अकेले में ही हो सकते हैं।


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