बचपन में कभी जाने-अनजाने गाँव में संडास आबादी से दूर तालाब किनारे या फिर नजदीकी पहाडी के ढलान पर संभव हो पाता था।इस बहाने प्रकृति की हवा का अंदाजा लग जाता था।इन दिनों मैं जानकर के भी शहर में रहते हुए ही हमारे आसपास के ख़ास सामाजिक वर्ग को समझने के लिहाज़ से नदी किनारे टहलने जाता हूँ।गाँव फिर से अपने आप दोहराने में आ रहा है।वहीं हाथ में डब्बा लटकाए निपटने जाता हूँ।किसी डाबरे के किनारे कुछ देर बैठ,लोगों को निहारता हूँ।आम आदमी कितना इत्मीनान से नहाता-धोता और टहलते हुए बीड़ी फूंकता है।मर्द भी चुल्हा जलाते हैं।जवान लड़कियां पास के जंगल से लकड़ियाँ बीन कर लाती है।बूढी औरतें रोटियाँ पोती है।मज़दूरी के पहले भी लड़के-लड़कियां इत्मीनान से सझते-संवरते हैं।कुछ मेहनती लोग पढ़ाई के बीच पड़ती गरमी की इन छुट्टियों में मज़दूरी से कमाया धन माँ-पिताजी को दे उनका कर्जा घटाने की एक कोशिश करते देखें हैं।ये सबकुछ उन नजारों की पैदा है जिसके लिए मैं अपने सुविधाजनक घर से हिम्मत कर बाहर निकला था।
एक दिन पहले ही अचानक क्या जमा कि डॉ. चेतन खमेसरा/खिमेसरा के घर जा धमका।बात एक चाय की संगत की थी।चेतन जी चित्तौड़ में मेरी नज़र में एक हिन्दी कवि के रूप में जाने जाते हैं।कभी कभार मंच संचालन में भी हाथ साफ़ करते देखे गए हैं।उनका परिवार,आम भारतीय की तरह छुट्टियों में कहीं बाहर था।वे नितांत अकेले घर पर थे।मूल रूप से उदयपुर के चेतन जी से मेरा उपरी परिचय तो रहा ही।मगर ये मुलाक़ात उनके बारे में अधिक जानने में काम की साबित हुए।विज्ञान के विद्यार्थी,हिन्दुस्तान जिंक में पर्यावरण से जुड़े विभाग में नौकरी।कभी हिन्दी में स्नातकोत्तर करने पर मोहन लाल सुखाडिया विश्वविद्यालय में दूजे स्थान पर रहे।
बकौल चेतन जी 'मेरी पी..एचडी. की थिसीस डॉ.सत्यनारायण व्यास ने एक दिन सुबह के समय नौ से साढ़े ग्यारह की एक ही बैठक में पूरी करवाई।उनका पठन विस्तार और सहयोग करने के नज़रिए के साथ ही इनकी कटु वाणी वाली सपाट बयानी का कायल हूँ।वे मुझे अपने भारत विकास परिषद् आदि में जुड़ाव को लेकर मुझे 'नेकरिया' करते थे.जबकि मैं असल में कभी संघी तो नहीं रहा।मगर मेरे अपने विचार,मेरे देश की संस्कृति और कला जगत को लेकर मेरी विचारधारा से वे वाकिफ थे।जो मेरे लिए हमेशा से एक पहचान तय करती रही ।राष्ट्रवादी होकर भी मैंने अपने ढंग से दो घोर कम्यूनिस्टों(डॉ.सत्यनारायण व्यास और कथाकार स्वयं प्रकाश ) से सहयोग लेकर शोध कार्य पूरा किया।
बकौल चेतन जी 'मेरी पी..एचडी. की थिसीस डॉ.सत्यनारायण व्यास ने एक दिन सुबह के समय नौ से साढ़े ग्यारह की एक ही बैठक में पूरी करवाई।उनका पठन विस्तार और सहयोग करने के नज़रिए के साथ ही इनकी कटु वाणी वाली सपाट बयानी का कायल हूँ।वे मुझे अपने भारत विकास परिषद् आदि में जुड़ाव को लेकर मुझे 'नेकरिया' करते थे.जबकि मैं असल में कभी संघी तो नहीं रहा।मगर मेरे अपने विचार,मेरे देश की संस्कृति और कला जगत को लेकर मेरी विचारधारा से वे वाकिफ थे।जो मेरे लिए हमेशा से एक पहचान तय करती रही ।राष्ट्रवादी होकर भी मैंने अपने ढंग से दो घोर कम्यूनिस्टों(डॉ.सत्यनारायण व्यास और कथाकार स्वयं प्रकाश ) से सहयोग लेकर शोध कार्य पूरा किया।
कुछ मेरे बारे में भी वे पूछते रहे।मगर मैंने ही उनके बारे में पड़ताल के,ज्यादा जानकारी बटोरी .एक बड़ी लड़की और एक बेटे के पिता चेतन,जैन धर्म से जुड़े हैं।यदाकदा कविता करते हैं।बातों में पता लगा बहुत दिन से आकाशवाणी वालों ने उन्हें याद ही नहीं किया।मगर रचनाकार का स्वाभीमान भी देखिये कि उन्होंने चूं तक नहीं किया।वरना इसी समाज और आबोहवा में हमने कई चिपकू लोग देखें हैं जो ज़बरन रिकोर्डिंग करवाने आ धमकते हैं।उन्हें रेडियो से ज्यादा रचना पाठ के बदले मिलने वाली मोटी रकम दिखती है।खैर हमने बातों के बीच उनके और स्वामी ओमानन्द सरस्वती के बीच के पुराने सम्बन्ध भी याद किये जब वे गुरुकुल जाकर हिन्दी की पढाई करने की कोशिश करते थे।
इस बीच बनास जन पत्रिका का चौथा अंक आया।सामान्य अंक होकर भी मुझे ये अंक विशेषांक लगा खासकर मेरे कई प्रिय रचनाकार इसमने शामिल थे।सत्यनारायण व्यास की सीता की अग्नि परीक्षा जैसी लम्बी कविता और स्वयं प्रकाश जी के चित्तौड़ को लेकर संस्मरण पढ़ने में बहुत आनंद आया। राम विरोधी कविता जब अपनी माटी वेब पत्रिका पर छपी तो इसके सम्पादक और हमारे साथी अशोक जमनानी को बहुत फोन आ.मैं बहुत हँसा .वाकई विचारधाओं को लेकर ये पचड़े हमेशा से रहे हैं।आज भी कायम है।स्वयं प्रकाश जी ने भी बहुत खूब लिखा है कि जो लोग समाज में पूंजीवाद विरोधी भाषण झाड़ते हैं और घर में आते ही भगवान् के एक मंदिर के आगे टन टोकरिया हिलाते हैं।धुप अगरबत्ती लगाते हैं।ये दोतरफा सवारी करने वाले लोग ही देश के लिए बोझ है जो अपना रास्ता ही तय नहीं कर पाते।
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