Loading...
04 जुलाई, 2012

03-07-2012

कोई व्यवसायी किस्म का आदमी भी खुद को किसी कलाकारी के इश्क में कभी कितना अकेला अनुभव कर सकता है।आज जाना तब जब मैं एक ऐसे शख्स से मिला /बतियाया जो सालों से एक अनोखी संस्था  संस्था के बीज को उगाने के बाद उसे सींचते हुए आगे बढ़ रहा था।बचपन से कलावादी संगत का आदि इंसान कलाओं का रसास्वादन करता हुआ एक तरह के नशे का शिकार हो जाता है फिर भले चाहे ये नशा प्रकृति भ्रमण,लोक और शास्त्रीय कलाओं के प्रदर्शन देखने, संगीत सुनने/सुनाने का हो या विचारवान दोस्तों की संगत का।


जब कोई शाम किसी कलाकार मित्र के गुज़रे तो उसके कहने ही क्या।जिन सिद्धांत और तौर/तरीकों के लिए मैं 'हार्मनी'' जैसी संस्थान का फेन रहा उसके मूल विचार को जन्मने वाले युवा और दोस्त भूपेंद्र सिंह भारद्वाज से मुलाक़ात हुयी।वे मेरे लिए एक खासे आकर्षक व्यक्तित्व होने के साथ ही भूपेन भैया थे.कुछ दिनों से मेरे मेसेज के ज़रिये वे जान पाए कि  मेरा आकाशवाणी से भी कोई लेना देना है।.हमारी अब तक कोई बड़ी यादगार मुलाक़ात नहीं हो पायी थी फोरी तौर पर एक दूजे को जानते थे।वज़ह थी डॉ ए .एल.जैन जो बहुतों के बीच सम्बन्ध बनने  की वज़ह रहे हैं।खैर

एक दिन पहले की तय बात के मुताबिक़ हम दोनों हमारे कुम्भा नगर वाले किराए के घर पर थे।बहुत सहजता से बातें शुरू हुयी बिना किसी बयानबाजी  को आलापने के बजाय हमने अपनी कहानी कुछ कुछ साझा की।वे मूल  रूप से नीमच मध्य प्रदेश के वासी हैं जो आजकल अंशकालीन रूप से चित्तौड़ में रहते हैं। दैनिक जीवन के बीच सरस कलापरक  जीवन की खोज में थे।मार्बल जैसे व्यवसाय में रोज की भेजामारी के बीच उन्हें कलावादी सम्बन्ध या ढंग की विचारधारा वाले मंच की ज़रूरत थी,शायद .ऐसा मेरा सोच था।हम एक दूजे प्रति आकर्षित थे।वे जुड़कर कुछ करने का मन रखते थे।इधर हम ऐसे विशिष्ट साथी से जुड़ कुछ तो सार्थक कर ही सकते थे।.जबसे बाज़ार ने हमारे घरों में कब्ज़ा जमाया है।मुझे लगता है चित्तौड़ जैसे तमाम मझोले शहर में हमविचार दोस्त मिलना बहुत ही मुश्किल काम लगने लगा है।बेकाम की मुलाकातें और चाय की थड़ी या फिर कोफी हाउस पर देर तक की लफ्फाजी के दिन बीत गए लगते हैं।

स्पिक मैके आन्दोलन ,अपनी माटी वेब पत्रिका और  ब्लॉग्गिंग के इलाके के साथ ही हमने आकाशवाणी और हार्मनी संस्था के जन्म आदि की बातें की।लगभग एक घंटे की मुलाक़ात के बीच कई पहचान के लोगों के नाम भी आये/गए।.एक चाय के बाद हमारी बात करने की शक्ति दुगुनी लगने लगी.बहुत मस्त इंसान हैं मगर बहुत सलीके के आदमी पसंद करने वाला है। जिन सिद्धांतों की नीव उनमें मैंने दर्शन के ज़रिये उन्ही के बातोंसे गुज़र कर देखी।.सच में बहुत आकर्षक है।.खैर ये मेरे शुरुआती बयान है।.अभी मुलाकातें और भी होगी,इसी वादे के साथ तो हम बात ख़त्म कर उठे थे।.

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

 
TOP