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13 जुलाई, 2012

''अदाएं'' शीर्षक की क्षणिकाएं

(''अदाएं'' शीर्षक की क्षणिकाएं) 


(1)
तुम अच्छी लगती हो
बातों के बीच
इशारे करती
अपनी दोनों आँखों सहित
पसंद आती हो मुझे
अनौखी आँख मारने की अदा
सहित
तब और भी फबती हो
जब
आधी जीभ को होंठो से थोड़ी सी बाहर
निकालते हुए
अचानक 
कसमसाती देह सहित
बतियाती हो मुझसे
देर तलक 
अच्छी लगती हो

(2)
तुम्हारा
बिना काम
आना
मेरी दूकान की तरफ
खरीदना--बतियाना ज़बरन
खिलखिलाना--मुस्कराना
कह जाता है
खुद--ब--खुद
दिल में छूपी बातें
कही नहीं जाती
कई बार
जो खुले में
करता हूँ इंतज़ार मैं भी
तुम्हारे  आने का
बिना काम
मेरी दूकान की तरफ


(3)
मैं देखता हूँ
तुम्हारे चेहरे पर
गुस्से को पीछे धकेल
आगे आता
ठसक भरी आँखों का
अपार प्यार

ढूलता हुआ ढ़लान पर
बढ़ता है
मेरी तरफ के कोने में
होता हुआ
इकठ्ठा
मेरे हताश जीवन के
डाबरों को
एक सा करता हुआ
दिल लूटता है
जब
मैं देखता हूँ
तुम्हारे चेहरे  पर

(4)
तुम्हारी
एकटक नज़र
कितना कुछ संभालती है
अपने में

देर तक
दबाकर रखी
मन की गहरी बातें
किसी चपल लहर की तरह
पछाटे  मारती होगी

आँख के किनोर से
बाहर आने को
आतुर
नज़र दौड़ाती होगी
मुझसे मिलने को
सकुचाती हुयी
छटपटाती होगी
सारी बातें
सालों से
हिस्सा है तुम्हारी अदाओं का
जानता हूँ 
 
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