रक्षाबंधन नाम आते ही 'अतीत' अपने पूरे जोर के साथ मानस पर उतर आता है। मुझे घेर कर नॉस्टेलजिक करने में कोई चुक नहीं करता है। याद आता है हम अपने पिताजी के साथ चांदी और भोडर की राखियाँ बनाया करते थे। 'होक' वाले परिवार ऐसी राखियाँ, रक्षाबंधन के एकाध दिन आगे-पीछे बांधा करते थे। परिवार में सालों पहले एक भाई राखी के दिन झूले से गिर कर चल बसा। हमारे बड़े पापा का बड़ा बेटा 'गणपत' करके था। मैंने नहीं देखा,सभी सगे कहते हैं। सालों तक इसी त्योंहार वाले दिन कोई बेटा या घर में गाय के बछड़े का जन्म नहीं हो सका। मतलब 'होक' जारी रहा। 'होक' ख़त्म करने के लिए लोग परिवार में गाय पाला करते थे। शायद कभी तो बछड़ा होगा। उन्हें केवल बछड़ा ही चाहिए था ,होक भंग करने के लिए बछड़ी का जन्म कोई मायने नहीं रखता था।। अजीब परम्पराएं थी और आज भी कमोबेश जारी हैं। फिर हमारे एक भैया के बेटा हुआ। गोपाल दादा के घर अर्जुन। ठीक इसी दिन। होक भांग गया। खुशियाँ लौट आयी।
बहन-भाई मिल खरीददारी कर आते। पांच रुपये में दस राखियाँ ले आते थे। हाँ एकाध गुच्छा फुन्दे (वे राखियाँ जो सबसे सस्ती और साधारण होती थी।) लाते ही थे। जिन्हें अलमारी, तिजोरी, पेन, शटर, नकुचे, कुंदे, देवी-देवता को बाँधा जाता था। हमारे औजारों में हथौड़े, चुग्गे, कत्ये, एरन से भी फुन्दे बांधे जाना हमारे अतीत का ज़रूरी हिस्सा था। नए कपड़े हुए तो ठीक वरना पुरानों पर ही इस्त्री करके काम चल जाता था। नारियल पर नारियल बदारे जाते, चटकों से जेबें लबालब। मूंह में नारियल, हाथ में नारियल, थाली में नारियल, झूलों के आसपास नारियल ही महकता था। गाँव में कहीं एक-दो जगह बड़े और मज़बूत झूले बांधे जाते। गांवभर के हमउम्र जवान छोकरे-छोकरी यहीं झूलते-बतियाते। 'हिंदे' के साथ गीत गाये जाते। कौन ज्यादा ऊँचे तक हिलोर मारता है ,यही देखा और आंका जाता था। बहुत तेज ऊँचे जाना 'घोड़ियाँ' लेना कहा जाता है। वे 'घोड़ियाँ और वे गीत सब अतीत में सिमट रह गया है। अफसोस गीत के तो मुखड़े भी याद नहीं रहे।
आखिर में सभी भाईयों को बहनें मुबारक और सभी बहनों को भाई मुबारक हो। इस राखी बहिन नहीं आ सकेगी,कहने मात्र से ही सिहरन हो उठती है। बचपन के तमाम रक्षाबंधन मिस करते हुए ही आज का दिन बूढ़े माँ-पिताजी के साथ गाँव में गुजारने जा रहा हूँ। बस यही कहना चाहता हूँ, राखी का मतलब बहिन के बगैर निकाल पाना लगभग असंभव ही है। ससुराल की राखी करने वाली पत्नी,माँ और भाभियों से पूछों उन्हें अपना पीहर कितना याद आता है.
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