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(1)
जाने कौन
गढ़ गया
ये प्रतिमान
तुम्हारे बहने की
हद तय करते हुए
बना गया
एक निशान दीवार पर
सूर्ख लाल रंग से
जाने कौन
(2)
कितनों ने
अनदेखा किया है
तेरे चुपचाप
सहने के सफ़र
और बहने की पीड़ा को
कितने कम लोग
जानते हैं
तेरे भीतर बहती
धाराओं का असल रोना
(3)
सबको देखा है
टीका-टिप्पणी करते हुए
उस निशान पर
जहां से तुम
कभी ऊपर
कभी नीचे
बहती मिली हो
अक्सर
मगर सदैव
अपनी सीमा में
बढ़ती हुयी
आगे
कसूर रहित
(4)
अफसोस
कहाँ समझ पाते हैं
नदी निहारते
वे किनारे खड़े
आलोचक
कहाँ थाह पाते हैं
पैंदे का खुरदरापन
औरयेनकेन बहने की नियति
के बीच
नदी का शांतचित स्वभाव
(5)
सूरज,चाँद और
चुनिन्दा सितारे
अक्सर तुझे ताकते हैं
बादल बाल संवारते हैं
तेरे ठहरे हुए पानी में
चुपके-चुपके
तुझे बहता देख
मुसाफिर खिलखिलाते हैं
ओ नदी इस तरह
कितनों का जीवन चलता है
तेरे बहने के साथ
जाने-अनजाने में
(6)
जीवन यात्रा
के सभी मौड़
अपनी परछाईयों
सहित
तेरे साथ जीते-हँसते है
तेरी मनमौजी शक्ल से
मेल खाती है
ज़िंदगी की सूरत
और
आजकल
मिलते है कठीन
सवालों के ज़वाब
तेरे किनारे
गुज़रती हुयी शाम के
किसी पहर
(7)
अक्सर
सफ़र में रुका हुआ
मुसाफिर भी
तुझे देख चल देता है
फिर से
किये हुए वादे
निभाने की खातिर
तेरी तरह
बहने निकलता है
राह को हरियाता हुआ
नि:स्वार्थ
(8)
सींचने,रचने और
आनंद उपजाने
में व्यस्त रही सदा
इस तरह
तुम्हारी
लगातार बहने की
मंशा के आगे
वश किसका चला है
भला
अब तक
वही तो करती रही हो
तुम
जो सोचा
तुमने बहने से पहले
(9)
कितनों की
पीर में
तुम संग बही हो
सारा जग जानता है
जानता है
ये ज़माना
तेरी
लगातार सहने और
बहने की आदत
के बीच का
तालमेल
(इन कविताओं का अधिकाँश हिस्सा आकाशवाणी चित्तौड़ पर एक ही शीर्षक कार्यक्रम 'नदिया' में उपयोग कर सात सितम्बर,2012 को प्रसारित हुआ है।)
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