रात साढ़े नौ बजे सत्यनारायण जी व्यास,मम्मी चंद्रकांता जी और रेनू दीदी घर आये।बस यूँहीं।खुशी के साथ ही संवाद का सुअवसर।घर-परिवार की शुरुआती बातों के बाद मित्रों की पुछाताछी।आकाशवाणी के योगेश जी कानवा की प्रशंसा।मीरा स्मृति संस्थान को अपनी सदस्यता बाबत लिखे पोस्ट कार्ड की जानकारी देते हुए व्यास जी। व्यास जी का अगले ही दिन पुणे में जैन धर्म को लेकर व्याख्यान की तनिक बातचीत।व्यास जी के निर्देशन में संपन्न पांच शोध के सभी पाँचों छात्रों पर व्यास जी की समीक्षात्मक टिप्पणियाँ अपने ढंग से आनंद दे गयी।राजेन्द्र सिंघवी जी की भतीजी के आकस्मिक देहावसान पर सामलाती रूप से दुःख।गोविन्दराम शर्मा 'भारत' के आगामी उनत्तीस तारीख को सांवलिया जी में 'वाचस्पति समारोह' नाम से आयोज्य एक कार्यक्रम पर कुछ चुटकियाँ।कनक जैन के हवाले से संभवतया जनवरी के आख़िरी दिन कथाकार और जो चित्तौड़ में सालों तक रहे स्वयं प्रकाश जी के आने की एक सुगबुगाहट।
आखिर में जातेजाते। व्यास जी की कुछ बातें
''साहित्य-साहित्य को रोने वालों आखिर कर साहित्य के आगे क्या? यह भी बता देते। जीवन में साहित्य साधन ही है न कि साध्य।बुढ़ापे में मोहभंग होता जाता है।बहुत सी तामझाम से मुक्ति की कामना।मैं कुमार गंधर्व का फेन हूँ उन्होंने जो 'हिरना समझ' जैसे भजन में तो गज़ब का गाया है। उनके काम में लोक और शास्त्रीय संगीत के समिश्रण का अद्भुत समन्वय है।मुझे हमेशा से संगीत ने अपील किया है जहां खासकर लोक संगीत की खुश्बू आती हो।''
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