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22 दिसंबर, 2012

कुछ नयी कवितायेँ-16

Photo by http://mukeshsharmamumbai.blogspot.in/
(1)
कुछ कान जो
केवल 
चिल्लाहट भरे विरोध 
से ही फड़फड़ाते हैं

अफसोस
कुछ ज़बाने
अब भी
सकुचा रही है
बोलने से

बिना शब्द उगले
अब भी
कुछ मौन चेहरे
गायब हैं
इस आग से
परिदृश्य में


(2)
हमारा दिल
धड़कता है महज़ जीवन के हित
बाकी तमाम हिस्सों पर भी भरोसा मत करना
पथरीले हैं सारे के सारे
हमारे पुर्जे
देख लिया हमने आजमाकर
दिल्ली रेप केस में


(3)
गलतफहमी की गुंजाईस 
नहीं रही अब बाकी
यहाँ 

कि 
कड़ाके की सर्दी में 
कुछ लोग 
बहुत कम कपड़ों में फिर रहे हैं 

पहला तबका
हालातों के मारे साथियों का हैं
दूजा तबका
पहले तबके की दुनिया से अनजान


(4)
बंद कमरों में
जी रहे हैं
सभी
अपने-अपने हाल
यूं अकेले होकर भी
हैं सभी बेखबर
अपने अन्दर की आवाज़ से


(5)
ये जीवन
ज़बरन
झांकता है
बीते साल में

आदत है इसकी पुरानी
कि बदलते ही बदलेगी 


*माणिक *

 
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