दिन चुपचाप ख़त्म हो जाता एक दायित्व की तरह। दोपहर में कुछ सुस्ती अपने आप घेरती है। शाम होते होते घर के काम याद आते हैं ज़रूरी ड्यूटी की तरह। मेले में छूट चुके साथी की तरह पीछे से बड़बड़ाता है चक्की पर पड़ा रह गया आटे का डिब्बा। एक काम के निपटान के ठीक बाद मिले आंशिक अंतराल में घर को चूमता है एक आदमी। थकान को एक मुस्कान में तब्दील करने में पसीना-पसीना एक औरत। नीदं से हाल जागी एक कन्या के होंठ पर नवशिशु की तरह कुनमुनाते कुछ शब्द गोया चोकलेट,क्रीम वाले बिस्किट, केला, ग्रेप्स, मंच वाली चोकलेट, टॉफी।
बिन्दुवार बात करने बैठे चार हमविचार साथियों की लेटलतीफ़ी के बावज़ूद शुरुआत। आधे की जगह डेढ़ घंटे तक खींची बैठक से गृहस्ती में तूफ़ान का आते-आते रूक जाना। तयशुदा अजेंडे से दूर जाकर होते विमर्श के कारण एक अर्थवान वैचारिक अंश का जन्म। पहचान के चेहरों से टपकती यादें। पानी, चाय, बिस्किट के बूते कतारबद्ध प्लेटों से सजी टेबल । सच उगलती जुबानें और खुलते हुए साथी। शहर के नामी गिरामी लोगों पर टिप्पणियों का बहाव। बैठक के बीच घुसपेठ करते फोन कोंल्स पर दनदनाती आवाजें और एक आपसी समझ और समझौते के साथ बातें सुनते हुए अभ्यस्त कान। सामाजिकता को पालने-पोषने की आदत के बीच मुश्किलों से भेंट।
पांवाधोक लगने के बाद भी फाटक तक अतिथि को छोड़ने में बतियाने की आदत का दोहराव। एक व्यस्त सड़क पर चलने और ज़बान लपलपाने का आनंद। करतब की तरह बाईक चलाते हुए कभी ना खत्म होने वाली बातों का लेनदेन करती रात की शुरुआत। रात की आमद पर घर के भोजन का बेसब्र इंतजार। कुछ ताने-उलाहने कानों में घुसने को सुपात्र की तलाश में भटकते हुए यहीं कहीं। अगले दिन की योजना बनाने के बोरियतभरे काम से अनचाहा डर। एक रिश्तेदार के घर पहूंच जाने की कुशल सूचना से उत्पन्न तसल्ली। किसी से बात नहीं कर पाने का अफसोस। दिमाग में अनार-आम की पहचान ठूंसने का मगजमारी भरा काम।यही कुछ आज की डायरी में लिखा जाना था।
ठक के बीच घुसपेठ करते फोन कोंल्स पर दनदनाती आवाजें और एक आपसी समझ और समझौते के साथ बातें सुनते हुए अभ्यस्त कान। सामाजिकता को पालने-पोषने की आदत के बीच मुश्किलों से भेंट।
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अच्छा उप्योग है ...
आपको बहुत बहुत धन्यवाद
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