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25 नवंबर, 2013

25-11-2013


  1. सुबह का निकला अपने गांव 'अरनोदा' होकर लौटा हूँ।माँ-पिताजी के साथ। आते-जाते रास्ते में अपने देखे में मैंने बहुत सारी कवितायेँ मुख ज़बानी बनायी/बिगाड़ी और फिर बहा दी।इक्कठे किए हुए बहुत सारे अंतरे हवा में बिखेर दिए।मुझे रास्ते भर कविताएँ लहराती/बहती/सरसराती/बात करती/सवाल करती/हल सुझाती दिखी।खाली खेत सहित हरे खेत देखे।चुनावी जलसों में जाती ठसाठस बसें/झंडियाँ लहराती मोटरसाइकिलें/हवा में नारे उछालते युवा/ रैलीनुमा चलकर चिल्लाते गांव-गांव पार करते जवानों पर आश्चर्य से देखती ग्रामीण औरतें देखी ।बहुविध अनुभवों से भरा दिन.आखिर में आते आते एक दिन पहले ही खुली,नहर में लबालब पानी को खेतों में जाते/पानी के स्वागत में खड़े किसानों की खुशी को महसूसा।
  2. मेरे जन्मदिन पर मिली सभी छुटकों/बड़कों/गुरुओं/संगी-साथियों/रिश्तेदारों/नातेदारों/खातेदारों/अपनों/परायों से जो शुभकामनाएं,मिली बेहद आनंद आया.खुद को रिश्तों की पॉवर से भरा अनुभव करता रहा.आपने अपनेपन से भरपूर मेसेज/फूल/ग्रीटिंग कार्ड भेजें थे.सब ने तारीफ़ की एक ने भी इस दिन मुझे मेरी कमी नहीं गिनाई।अरे हाँ केक-पार्टी-शार्टी वगैरह का यहाँ हमारे गिरस्तीप्रधान आम जीवन में कल्चर है नहीं सो कुछ भी हुआ नहीं।बस शाम को शहर में बाइक से यूँ ही रबड़ लिए.(खैर इस अनर्गल प्रप्लाप के लिए मुआफी।आप सभी अपनों का शुक्रिया।साथ रहिएगा।यहाँ अकेले चल पाना मुश्किल काम है.)
  3. साल में तीन बार आने वाले मेरे जन्मदिन में से आज वो जन्मदिन है जो पिताजी ने मुझे बचपन में गणित की ठीक-ठाक समझ आ जाने पर बताया।उन माड़साब की बदौलत एक जुलाई भी अपुन का जन्मदिन है जिन्होंने मुझे पहली बार स्कूल में एक जुलाई को भर्ती किया था.एक चौबीस नवम्बर है जो शादी के बाद पत्नी के जोर देने पर सर्पकालदोष/मंगल/अमंगल/शनि के चक्कर में दिमागी भ्रम के निवारणार्थ जन्मपत्री बनवाने पर पता लगा.जन्मदिन के भी अपने मायने/चोंचले हैं.मुझे यह सिर्फ चिंतन के नाम पर एक अवसर सरीखा सूझता है.

    खैर हर जन्मदिन पर कुछ हो न हो मुझे अपने अपनापे से लबरेज फेसबुकी मित्रों की शुभकामनाएं पढ़कर बहुत हिम्मत और ताकत अनुभव होती है.ऐसे दिनों में ही आकर लगता है यह भी कॊई आभासी दुनिया तो नहीं ही है.आप सभी के साथ बेहतरी की तरफ बढ़ने की फिर से कसम खाते हुए आप सभी का शुक्रिया।आपके लिखने के हित केवल आज के लिए मैंने अपनी TimeLine खोल दी है.(बीते साल की तरफ देखता हूँ तो लगता है कुछ भी सार्थक/बड़ा/गहरा/गम्भीर किस्म का काम नहीं किया)

    उम्र बढ़ने के साथ और कुछ हुआ न हुआ हो मैं अपनी संगतमंडली/पठन-पाठन/कुदाफांदी के चलते तनिक गम्भीर किस्म का आदमी जैसा लगने लगा हूँ.वैसे बता दू सारी गम्भीरता तब ही उड़न छू हो पाती है जब मेरे लंगोटिया यार मिल बैठते है और लम्बी गप हाँकने के दौर चलते हैं.गांव से सन सत्तानवे में शहर की तरफ निकला था तभी से बाहर ही हूँ.कॉलेज कभी गया नहीं,निजी और सरकारी स्कूली नौकरियां करते हुए आज तेरह साल हो गए.चित्तौड़ शहर में लगभग सोलहवां साल है.इन सालों में मैंने बहुत से दोस्त कमाए हैं.(अफसोस जो मेरी भलमनसाहत को समझ नहीं सके वे दुश्मन बन बैठे).इस पड़ाव पर एक नयी दिशा मिली है.अरे हाँ आख़िरी बात ये कि वक़्त ने और मेरे आलसीपने ने साथ दिया तो कुछ अच्छे परिणाम आने वाले कुछ सालों में आ पाएंगे।''आप सभी मित्रों के बगैर मेरा वजूद कुछ भी नहीं है'' :सनद रहे यह आख़िरी वाक्य नॉस्टेल्जिया से प्रभावित नहीं है
  4. 'इतनी शराब पीना गलत बात है जिसमें आपका खुद पर कंट्रोल जाता रहे' ( क्या शराब पीने के बाद प्रगतिशीलता/स्त्री विमर्श की पैरोकारी/संस्कारगत आदतें छू मंतर हो जाती है,मुआफ करना मुझे शराब की आदत नहीं है जानने की उत्सुकता में पूछ लिया )
  5. ''मुझे जेल में वे सारी सुविधाएं(केसर दूध/तेल मालिश/फल-फ्रूट/फोन-फान/फेमिली डॉक्टर/चेले-चपाटी से बतियाने की दैनिक आज़ादी ) चाहिए जो घर पर मिलती रही,सुविधाएं मिलना नक्की करो तो जेल के लिए मेरी हाँ '' (अपराध की सजा के नए प्रावधान)
  6. ''मैं अगले छः महीने तक कोई कविता नहीं लिखूंगा और 'युवा रचनाकार' पद से खुद को मरहूम समझूंगा'' (अपराध की सजा के नए प्रावधान )
  7. अचरज जारी है:-ये बड़े-बड़े 'लेखक' भी अंदर से इतने पोपले/गालघुसेड़ू/दोगले/पढ़ने को लिख्खाड़ और दिखने में 'थिंकर' फिर भीतर से ये 'नयी पदवी' !
  8. खुद का बर्थ डे भूल जाओ कोई बात नहीं मगर अर्धांगिनी का जन्मदिन मायने रखता है( डालर ऊर्फ नंदिनी हेप्पी बर्थ डे )
  9. हमारे वरिष्ठ साथी/कामरेड/अनौपचारिक गुरु/लगभग गुरु/स्वतंत्र लेखक/सेवानिवृत प्राचार्य/समाजशात्री/अधिवक्ता/शिक्षाविद सरीखी तमाम पदवियों के ये धारक बीते अक्टूबर बिहार यात्रा पर थे.सभी चित्तौड़ के हैं.बहुत सारी संस्थाओं में इनका दख़ल है.सभी वक्ता है.मुंगेर में योग विद्या से जुड़े विश्व स्तरीय पांच दीनी अधिवेशन के बाद कुछ दिन बौद्ध स्थलों की यात्रा पर रहे .उम्र के इस पढ़ाव पर यात्राओं का आनंद लेना कोई इनसे सीखे।
  10. ''परम्परा कोई बंधी हुई नाली नहीं है बल्कि वह अविरल बहती हुयी नदी है जो पुरातनता को पीछे छोड़ जाती है और नूतनता को गले लगाती है '' (आज निबंधों में बतरस शैली के ख़ास हस्ताक्षर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का निबंध 'अशोक के फूल' पढ़ा)
  11. सारे पुरुष एक सरीखे होते हैं,चार पुरुष देखने के बाद सावित्री ने आखिर मान लिया कि जीवन में पूर्णता कभी नहीं आती उसकी खोज में यूँही वक़्त बीत जाता है (आज मोहन राकेश का नाटक 'आधे-अधूरे' पढ़ा,बाकी आनंद।)
  12. मुआफ करना 'कुछ पत्रिकाओं' के सम्पादकों को भेजी हुयी रचनाओं के प्रत्युत्तर देने में भी जोर आता है अरे भाई कवितायेँ हल्की हो सकती है(कभी कभी सम्पादकों की समझ के बाहर भी ) मगर हामी भरने/ नकारने की कुछ तो शब्दावली होगी।कभी कभी लगता है वे रचनाएं इस कदर दबा के बैठ जाते हैं जैसे कोई ज़मीदार खेतीहर मजदूर के कुछ पैसे दबाकर आंशिक भुगतान कर देता है ताकि मजदूर का जी उसी मालिक और उसी की खेती में उलझा रहे.मित्रो,यह 'नहीं छपने की पीड़ा' नहीं कुछ 'आकाशमुखी' लोगों का 'चलन' है जो हम युवा रो रहे हैं
  13. जिसकी नवाचारी लेखन स्टाइल का मैं बहुत महीनों से कायल रहा हूँ ,अक्सर उसे पढ़ने का समय जुगाड़ ही लेता हूँ आज विनीत भाई का ओमप्रकाश वाल्मीकिजी पर लिखा संस्मरण पढ़ा.फिर से अभिभूत जैसा कुछ लग रहा है.

    इस युवा दोस्त का यह संस्मरण आप भी पढ़े यही सोच लिंक साझा कर रहा हूँ खाली 'लाइक' करके आगे नहीं बढ़ जाना(मेरे लिए 'लाइक' का मतलब पढ़ने के बाद 'लाइक' ही होता है वर्ना 'आइस्पाइस' और 'ये लगी थप्पी' जैसे बचपने खेल के माफिक 'लाइक' ना भी मिले तो चलेगा।एक बात और कह दूं मैं अपने स्टेटस में श्वेत-श्याम फ़ोटो लगाने का आदी हूँ वो भी इसलिए इस भीड़ में अपना स्टेटस सम्भालने में दिक्कत नहीं हो )http://www.hunkaar.com/2013/11/blog-post_19.html
  14. पटना के मित्रों ने गज़ब का आयोजन प्लान किया है आसपास के सभी हमविचार साथी ज़रूर पहुँचिएगा।उन्हें भी लाइएगा जो मुख्यधारा के सिनेमा को ही 'असली सिनेमा' मान बैठे हैं.इस फेस्टिवल की फिल्में देखेंगे तो 'अक्कल दाढ़' आ जाएगी।( सूचनार्थ बता देना चाहता हूँ कि मेरी भी अक्कल दाढ़ बीते महीनों उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल में आयी थी) 
  15. एक लगभग अचरज की बात कहूँ (वैसे अब आदत बन गयी है ) कि राजस्थान के किसी भी बड़े/नामचीन अखबार में ओम प्रकाश वाल्मीकि के चले जाने का चूँ-चकारा तक नहीं।हम किधर जा रहे हैं ?
  16. मैं जीवनभर फिल्मों में व्यस्त रहा,फेंस भी बहुत बने,दौलत भी अपार कमाई , देश दुनिया भी बहुत घुमा,मगर मैंने कोई भी निस्वार्थ भाव का काम नहीं किया,युवा पीढ़ी में वैज्ञानिक दृष्टि नहीं फूंकी।प्रगतिशील सोच किस चिड़ियाँ का नाम है मुझे नहीं पता.मैंने किसी बड़े मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला।मैं सार्वजनिक जीवन में अक्सर चुप रहता हूँ.मेरा काम है बस फिल्मों में मिला रोल करना और पैसा कमाना।रोल में मेरा परिचय किस तरह से बाहर आ रहा है इससे मुझे कभी भी कुछ लेना-देना रहा ही नहीं।मैं बलराज साहनी,श्याम बेनेगल,सत्यजीत बना ही नहीं, मतलब इन सभी बातों का एक ही अर्थ है कि इस देश के लिए मैं सबसे मुफीद किरदार हूँ
  17. मैंने भी क्रिकेट खेली है,मैं भी सचिन की तारीफ़ में रहा हूँ ,भारत रत्न से मुझे भी खुशी है मगर मेरे विचार तनिक विरोधाभाषी होना चाहते हैं उनके यहाँ चौड़ाने की गुंजाईश कम ही बची है
  18. जो गैर बराबरी के सन्दर्भ को जीवन में नहीं अपनाता,जिसके विचारों में दबे/कुचले/गरीब/वंचित/आदिवासी के हितसाधक मसले शामिल नहीं है वे तमाम हमें न आज भाए हैं न कल भाएंगे
  19. मैंने बहुत पैसा कमाया मगर मैंने राष्ट्र हित में किसी दूजे के हित एक कोड़ी खर्च नहीं की,हो गया ना मैं महान
  20. मैंने आज पढ़ा है कि 'किसी' ने 'खरी-खरी' कह दी और ये भी सुना है कल 'किसी' ने 'अच्छी-अच्छी' बातें की थी.आओ हम भी अच्छी बातें करना सीख जाए,किसी को कुछ भी नहीं कहें।रास्ते-रास्ते जाएँ , रास्ते-रास्ते आएँ ,खाएँ-पिएँ और सो जाए. दिन उगे से शाम ढले तक फिर यही दुहराव।है ना सहूलियतभरा जीवन।बोलो माणिक बाबा की जय
  21. यहाँ धारा के विपरीत सोचना/बोलना/लिखना/वाक्य चपेकना/कार्यक्रम आयोजना/चर्चाओं में बहसना/विचारना/तर्क सरकाना बड़ा मुश्किल/साहसिक/खतरनाक किस्म का काम हो गया है.कुछ बोले कि 'वे' अपने मत की पुष्टि में दे गालियों पर गालियां उबकेंगे।ऐसों से मुक्त कर दे मेरे 'निर्गुण निराकार'।

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