आदमी अर्धांगिनी से पहले उठे,मतलब छः के अलार्म पर साढ़े छः आदमी और घर के बाकी सात के आसपास।आदमी दाँत रगड़े,रात के बचे दूध से चाय उकारे,अदरक कूटे,छानछून कर कप-तस्तरी में उँडेल श्रीमती को जगाए,कबीरा ऐसे घर बिरले जानो। कितने कम गृहस्थियाँ होंगी जहां आदमी के कपड़े आदमी ही धोए-झँकोले।रोज एक वक़्त का खाना नहीं हो सके तो भी कम से कम एकल परिवारों के हालात में दूजे की मासिक-पीड़ा में पाँच से छः दिन आदमी एक बाल्टी गरम पानी और एक कप चाय उपाहार दे सके, ऐसे घर भी बिरले ही होंगे।
सवेरा ऐसा कि एक काम के निबटते ही आदमी खुद निबटे और तीन गली छोड़ के चौथी के मुहाने पर किराणे की दूकान से तीस का किलो के हिसाब से दो थैली अध-अध किलो की ला-के गरम भी करे.अगला काम चारेक साल की बेटी को येनकेन बिस्तर से उठा कर नींद से अलग करना फिर उसके लिए दूध पिलाई की रस्म अदा करना बुढ़ाती आँखों के आगे सुई में डोरा पोने के माफिक है.दूध भी हमारे बचपन की तरह बकरियों का नहीं सरस डेयरी का हो,उसमें किसी हार्लिक्स टाईप की कंपनी का बुरादा घेर कर मथना हो दिव्य अनुभव होता है।यह दिव्य अनुभव वहाँ जाकर ख़त्म होता है जब आदमी रात की गलाई बादाम के छिलके उतार कर बेटी के मूँह में ठूँसे। एक-एक गतिविधि अतीत में ले जाने को उतारू।छिलके उतारने की रस्म से चंद्रकांत देवताले जी की कविता की पंक्ति या आ पड़ती है कि 'माँ ने जाने किस-किस के छिलके उतारे मेरे लिए'. अतीत में जाँके तो बेटी के मूहँ में बादाम देख हमें निम्बाहेड़ा के चित्तौड़ गेट के ठीक नीचे भूंगड़े भेचाती चाची माँ याद आती हैं, भूंगड़े का मतलब मेरे लिए कभी-कभी अशोक कुमार पाण्डेय की कविता 'जगन की अम्मा' भी हो जाता है.सबसे आखिर में एक और गैर-आसान काम, स्कूल के लिए तैयार करने की मगजपच्ची में बेटी की छोटी-छोटी चार अंगुलियाँ और एक अँगूठे को छोटे से दस्ताने में ठीक से फिट करना भी दसवीं के समीकरण और थीटा के सवालों को सॉल्व करे के माफिक है.दो हाथ,आठ अंगुलियाँ,दो अँगूठे,दो दस्ताने कुलमिलाकर पाँच मिनट का मुआमला है.इस पूरे सवेरे में ऊर्जा का एकमात्र स्रोत कम्यूटर पर यूट्यूब में बजता हुआ विदुषी गायिका अश्विनी भिड़े देशपांडे का राग अहीर भैरव था। अहीर भैरव का अर्थ तो मुझे नहीं मालुम(मालुम भी नहीं करना है) मगर इस राग ने मुझे और बेटी अनुष्का को मस्त कर दिया।बेटी को उठाने के लिए मैंने एक भी रेड़का (नाम बिगाड़कर बुलाना) नहीं लगाया।सारा काम राग ने खुद-ब-खुद कर दिखाया।
इधर बहुत सारी ख़बरें एकमेक हो रही है.साहित्य अकादमी के सम्मान-2013 की घोषणा में राजस्थानी के परिचित कोटा के अम्बिकादत्त जी के आने से भीतरी खुशी का अनुभव है.यह सम्मान उन्हें उनके राजस्थानी कविता संग्रह "आंथ्योई नहीं दिन हाल" (प्रकाशन बरस : 2010 , प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर) पर मिला है.यह सम्मान जाने क्यों लगता है कि हम सभी मित्रों का ही सम्मान है.असल में अम्बिकादत्त जी के व्यक्तित्व में भी वह अपनापा मौज़ूद है जो साहित्य का हासिल माना जाता है.उनसे घोषणा के बाद हुयी बातचीत में भी वे कह रहे थे कि हरीश भादानी ठीक ही कहा करते थे कि कविता मनुष्य होने की शर्त है,अगर कविता हमें मानवता के करीब नहीं ले जाती है तो मनुष्य होने में समझो कसर अभी बाकी है.हिंदी में मृदुला गर्ग जी को उनके उपन्यास 'मिलजुल मन' पर मिला है.मेरा मृदुला जी उनके उपन्यास से परिचय नहीं है.एक दो दिन पहले ही राजस्थान साहित्य अकादमी के सम्मान भी घोषित हुए,घोषित क्या हुए विवादित हुए.घोषणा के तुरंत बाद ही सम्मान बेचे जाने की खबरें।वेद जी के साथ होकर भी उनसे असमहत होने के अधिकार का प्रयोग कर रहा हूँ.इस बारी मीरा पुरस्कार काँकरोली के क़मर मेवाड़ी जी को उनकी कहानी संग्रह 'जिजीविषा और अन्य कहानियों' नामक पर मिला।पहले तो लगा प्रिंट मिस्टेक हो गया होगा शायद 'जिजीविषा और अन्य कहानियों' की जगह 'सम्बोधन' होना चाहिए था.खैर मेरे जैसे प्रिंट मिस्टेक सोचने वाले हैं ही कितने।वैसे अकादमी अध्यक्ष वेद जी पर 'पीएचडी' की आवश्यकता है।
उधर लोकपाल पास हुयी मगर मैंने खुद को 'सपा' और 'आप' पर मंथन में ही व्यस्त पाया।दु:खद खबर यह भी कि दिल्ली में हमविचार साथी खुर्शीद अनवर ने आत्महत्या/हत्या कर ली.अनवर भाई को शब्दांजलि देने में उनसे मेरी अपहचान आड़े नहीं आती।आरोपों में फंसे एक बाबा,एक छोटे बाबा,एक जज,एक पूर्व सम्पादक पर टीवी के ज़रिए हमने भी नज़रें गड़ा रखी है.
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