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01 फ़रवरी, 2014

02-03-2014

चित्रांकन-अमित कल्ला,जयपुर 

  • हमने कुछ सलीकेदार संज्ञाओं को लापरवाही से बरतना शुरू कर दिया है जबकि ऐसे दौर में मैं फिर से दोहराना चाहता हूँ कि 'पढ़ना' और अच्छे को 'सराहना' हमारी पहली ज़िम्मेदारी है.यही कुछ सीख रहा हूँ आजकल.पहले के बहुत सालों तक मैंने स्पिक मैके से 'सुनना' और 'देखना' सीखा था.'लिखना' अभी मेरी प्राथमिकता में नहीं है और अभी उतना दम भी अर्जित नहीं कर पाया.बस यूंही प्रेक्टिस के तौर पर कुछ अठखेली करता रहता हूँ.
  • आज नदी के किनारे कुछ देर एकांत भोगा तो नदी ने मुझे एक कविता रचने की अनुमति और वातावरण दिया.नदियां,पहाड़ और जंगल देना ही जानते हैं.जो भी इनकी संगत में जाता है कुछ लेकर ही आता है.जबसे इस प्राकृतिक धरोहर का ख़याल आदमी की प्राथमिकता से जाता रहा बस तभी से हम बहुत कुछ खोते ही जा रहे हैं.इनके प्रति हमारी उदासीनता ने सेठों को मौक़ा दिया है कि वे इन सम्पादाओं को अनाप-शनाप तरीके से कब्जा रहे हैं.ठीक वक़्त के जागरण से ही कुछ बच सकता है.वरना आनंद और एकांत उपजते जंगल,नदी और पहाड़ की ऐसी सौगातें डॉक्युमेंट्री के विषय बन जाएगी.
  • एक सुबह कुछ गज़ब हुआ.विविध भारती की प्रखर आवाज़ युनुस भाई की आवाज़ में हमने अपने कम्यूटर से ही हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य आलेख 'ठिठुरता हुआ गणतंत्र' और विविध भारती की एंकर ममता सिंह जी की आवाज़ में हमारे प्रिय स्वयं प्रकाश जी की कहानी 'नीलकांत का सफ़र' सुनी.दोनों रचनाओं में देश के यथार्थ का कच्चा चिट्ठा खोकर रख दिया है लेखकों ने.बहुत बारीक डिटेल्स के साथ लिखना कोई स्वयं प्रकाश जी से सीखे.अमूमन देखे जाने की नज़र से जुदा देखने का कौशल है हरिशंकर परसाई में.एक ही दृश्य को परसाई जी विविध अंदाज़ में देखते हुए उसे सोचते हैं और दीगर बात यह कि उसे पोस्टमार्टम स्टाइल में उदेड़ते हुए लिख भी देते हैं.
  • चित्तौड़गढ़ में इन दिनों मुनि जिनविजय जी द्वारा स्थापित सर्वोदय साधना मंच,चंदेरिया के आयोजन चल रहे हैं.एक बात ओर यह कि मीरा स्मृति संस्थान के सचिव सत्यनारायण जी समदानी ने हाल ही में मुनिजी पर एक मोनोग्राफ लिखा है.जो अस्सी पेज की पुस्तक के रूप में प्रकाशित भी होकर इसी समारोह में विमोचित हुआ है.

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