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20 अप्रैल, 2014

20-04-2014


  • शहर में खुद के लिए साहित्यिक-रिचार्ज लेने हेतु कई दोस्त हैं आज शाम एक घंटा राजेश चौधरी जी के यहाँ से रिचार्ज करवाया.राही मासूम रज़ा साहेब का 'आधा गाँव' लेने गया.कल से पढूंगा.गया तो हंस के ताज़ा अंक में रचना यादव के अपने पिताजी राजेन्द्र यादव के नाम खुला ख़त-2 पर चर्चा चल पड़ी.बात निकली तो हमारे अंगरेजी माध्यम की शिक्षा-दीक्षा को लेकर दिशाभ्रमित होने पर देर तक चलती रही.कुछ बात आगामी मई दिवस के भीम जाने की यात्रा पर भी हुयी.असल में अरुणा राय हर साल एक मई को भीम,राजसमन्द में सालाना बड़ा जलसा करतीं हैं.राजेश साहेब वहाँ जाते रहे हैं इस बारी मैं उनके साथ जाऊंगा.बीती बार हमारी रेणु दीदी और सुमित्रा भाभीजी गए थे.राजेश साहेब के साथ यात्रा के अपने आनंद हैं.खैर आज के रिचार्ज में हमने कथाकार सूर्यबाला की कहानी' दादी और रिमोट' पर भी चर्चा की.चर्चा का मतलब राजेश जी ने अपने पढ़े पर समीक्षात्मक वक्तव्य दिया और मैंने सुना.राजेश चौधरी आदमी बड़ा पढ़ाकू है यह बात जितनी कही जाए कम है.बहुत हद तक हल्का कर देने वाला व्यक्तित्व.उनका लहजा बड़ा मजाकिया और व्यंग्यात्मक रहता है जो कमोबेश मैंने भी चुरा लिया है.उम्र भले पचपन की हो मगर दिल सत्रह-अठारह के आसपास का होगा.हद से हद तेईस का.
  • हमारे गुरु प्रकाश खत्री जी की संगत का असर आता है तो मैं कह उठाता हूँ.इन दिनों शामें हसीं हैं.दिन का सबसे खुबसूरत हिस्सा.सड़कें गीली,मकान गीला,आदमी नमीयुक्त.शहर में आज फिर आंधी आयी,फिर बरसात आयी,छतों पर सूखते कपड़ें अवेरे,पीला आसमान देखा,खिड़कियों की चिटकनियाँ अलगाई,वेंटिलेशन पर लगे हलके चद्दर पर भारी वजन रखा,दरवाज़ों को ठीक से संभाल अटकाया.मोहल्ले में अफरा-तफरी देखी.बिजली और बादलों की आवाजों में सबकुछ कमजोर.एक इन्वर्टर के अलावा भी बहुत कुछ था जो घर में उजास भर रहा था.बारिश और हवा के कमजोर पड़ने पर लगे हाथ दूध की थैली आयी.अब दो कप चाय और दो लोगों के बीच घर की बेहद ज़रूरी बातें.चित्तौड़ का किला फ़तेह करने के प्लान.अर्धांगिनी का आस्थापरक रवैया और माताजी के रविवारीय दर्शन.चाय ख़त्म होते-होते मैं सबसे पहले 'आसाम' हो आया.ये मध्यमवर्गीय परिवारों की आरामदायक शामें हैं जहाँ ओर कुछ कहना ठीक नहीं है
  • अर्धांगिनी की शिकायत वाजिब है भाई ''जब हमारे बालम बहुत दुबले-पतले और साधारण कद-काठी के थे तब के दौर में मैंने उन्हें चुना और अब आज जब शक्ल ठीक-ठाक हो चली,बदन भी बेहतर है,चेहरा भी खिल गया है,साईकल की जगह बाइक है.कपड़े-लठ्ठे भी ढ़ंग के पहनने लगे हैं.जेब में दो कौड़ी आ गयी है.माथे पर दिखती नसें अब गायब हो चली है तो इस खुश-खुश नाक-नक्स और मौसम का आनंद बालम की सहेलियां क्यों लें भला.'' शिकायत वाजिब है
  • राष्ट्रीय खबरों का मुझे मालुम नहीं मगर हाँ मुझे यह बात ज़रूर ध्यान है कि मेरी हडमाला बस्ती में ज़मीन लेवल पर ही पानी का टेंक हैं.पूरा गाँव वहीं से पानी भरता है.सीधे लाइट आते ही ट्यूबवेल से टेंक भरना शुरू.पता चला टेंक लीकेज हो गया है.अब औरतें गाँव के एकलौते हेंडपंप से पानी भरती है .हेंडपंप स्कूल में हैं और मैं स्कूल का माड़साब.इस तरह पूरा गाँव आजकल स्कूल आता है.यही है हमारा राष्ट्र और हमारी राष्ट्रीय परिधी.
  • पहले से ही तारीखों में उलझा हुआ आदमी,घर में इंसान तीन,कैलेण्डर पाँच,सभी की अपनी दीवारें,आलस के मारे सभी में पन्ने जो खुले हुए हैं अलग-अलग और बीते महीनों के ही हैं.एक बेटी के स्कूल का कैलेण्डर है जिसे कम्यूटर टेबल के ठीक पीछे लटकाया है.एक वर्धा विश्वविद्यालय से आया है जो टीवी के ठीक पीछे लटका है.एक राजेश चौधरी जी ने गिफ्ट किया वो अहमदाबाद से लोकनाद संस्था का बनाया हुआ है रसोई के ठीक बाहर निकलते ही लगा हुआ है.एक आईने के पास टंगा है जो पड़ौसी और बिरला सीमेंट के कर्मचारी सोमाणी जी ने उपहारा है.दो-तीन कैलेण्डर विज्ञापनों से लथपथ भी मिले जो अखबार के साथ आये उन्हें अपने सरकारी स्कूल और गाँव में पिताजी को दे आया.
  • माँ-पिताजी गाँव से फोन करते हैं.दोनों बारी बारी से बात करते हैं जो सवाल माँ पूछती है उन्हीं को पिताजी अलग से पूछते हैं.मेरे जवाब हर बार बदल जाते हैं.पिताजी अब कम सुनते हैं.बात करता हूँ तो मेवाड़ी बोलता हूँ वो भी जोर-जोर से.शहर का सभ्य मुहल्ला कुछ भी सोचे.ज्यादा सोचूँगा तो माँ-पिताजी क्या सोचेंगे.(फेसबुक से बाहर भी दुनिया है)
  • एक शाम,बारिश के बाद का शहर,बाइक पर बेटी और अर्धांगिनी,किले की रामपाल पर बने विश्राम स्थल की छत से दिखता चित्तौड़.घर-परिवार की बातों के बीच फोन कॉल्स की आवाजाही.व्यू पॉइंट पर गुफ्तगू.(फेसबुक से बाहर भी दुनिया है)
  • मेरी कविताओं के पहले श्रोता.फोन कोई भी करे कविता पर बात ज़रूर होती है.बीते दिनों कुछ नयी कवितायेँ लिखी और सुनायी भी.जब भी सुनायी चर्चा के बाद उनमें सुधार किया.हमेशा मुझमें उत्साह भरने वाला शख्स है अशोक जमनानी.पत्नी भी तभी सुनती है जब अशोक भाई को सुना रहा होता हूँ.जो मेरे करीब रहकर भी मुझसे नहीं पूछते कि ''क्या कोई नई कविता लिखी कि नहीं?'' मुझे उनसे कोई शिकायत न थी न है.आशा भी नहीं कि वे मुझे प्रोत्साहन देंगे.एक रचनाकार हमेशा एक अदद श्रोता चाहता है.खैर.शुक्रिया अशोक भाई मुझे करीब रखने के लिए
  • चन्दा चौधरी हमारी परिचित हैं.गुजरात में एक एनजीओ में एक्टिविस्ट हैं.बहुत मेहनती और बोल्ड युवती है.मेरी पहचान स्पिक मैके में फक्कड़ी और घुमक्कड़ी के दिनों की है.सालों बाद हम फिर मिले.चित्तौड़ आयीं तो मेरे घर एक चाय-पकौड़ी की महफ़िल सजी.उसी से एक तस्वीर.मिलने और बीते वक़्त को याद करने में बीती वो दुपहर यादगार हो गयी.शुक्रिया चन्दा अतीत में ले जाने के लिए.नंदिनी के साथ चन्दा ने बहुत सी बातें शेअर की.बड़े आनंद के साथ हमने घर-परिवार से लेकर कामकाजी ज़िंदगी पर चर्चा की.भागदौड़ के बीच ऐसी दुपहरें एकदम तरोताज़ा कर देती हैं.
  • एक हमारे समय के अजीम फनकार और युवा चितेरे कल्याण जोशी हैं.पुर,भीलवाड़ा से निकले जोशी गोत्र के इन छीपों ने देशभर में शाहपुरा और भीलवाड़ा के जानिब से फड़ चित्रकारी का नाम रोशन किया है.वैसे बाद के दौर में कई चित्रकार इस शैली को करते हुए चित्तौड़गढ़ सरीखे दूजे कस्बों में भी जा बसे हैं.कल्याण जी उन गौरवशाली युवाओं में शामिल हैं जिन्हें श्रीलाल जी जैसे गुरु पिता से सिखने का मौक़ा मिला.लोकचित्र शैली के इस इलाके में श्रीलाल जोशी ठीक से पहचाना हुआ नाम है.पद्मश्री और शिल्पगुरु जैसे सम्मान एक तरफ भी रख दें तो श्रीलाल जी का काम अपने ढ़ंग से देशभर की आर्ट गैलेरियों और कई भोपों के रोजी रोटी के साधन के रूप में में शोभा पा रहा है.बीते एक दशक में मैंने पाया कि कल्याणजी-गोपालजी जैसे भाइयों की जोड़ी ने भी बहुत नाम कमाया है.मेरा अनुभव है कि हस्तकला में जितनी ऊर्जा मेहनत चित्रांकन में लगती है उतनी ही इनकी मार्केटिंग में और इत्तिफाक से कल्याण बाबू इस दूसरे वाले काम में भी कुशल हैं.कल्याण भाई को हमारी तमाम शुभकामनाएं.

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