- शहर में एक कवि संगोष्ठी में जाना हुआ.मैंने विविधताभरे कवि देखे.कुछेक कवि होने भ्रम में बुढा गए हैं.कुछ सिलेबस की किताबों से कविता बांच कर चले गए.कुछ ने अत्यंत साधारण दोहों के पठन पर दोहे के पहले और दोहे के बाद दस-दस मिनट के भाषण भी चपेक दिए.एक कविता के नाम पर भजन चिपका गया.अच्छा ये हुआ कि कुछ गीतकारों ने नए और प्रगतिशील गीत पढ़े.मैं मंच के हिसाब से कविता नहीं पढता जो बेहतर लिखा है उसे ही पढने की सोच रखता हूँ.कई मर्तबा मंच वाले मुझे अगलीबार नहीं बुलाने की भी सोच सकते हैं इस बात कि परवाह नहीं करता.कविता पढने के बहाने हमें कई बिगडैल कवियों को भी सुनना पड़ता है.उसी कवि संगोष्ठी को अटेंड करना चाहिए जहां हमेशा चयनित कवियों को बुलाये गया है.कई मर्तबा कमजोर कवियों के चक्कर में बेहतर कवि बहुत बाद में मंच पर उतारते हैं तब तक बेचारा श्रोता अधमरा हो जाता है.वैसे लोगों को ये भी समझाने की ज़रूरत है कि कविता और भाषण में फर्क है.जहां कविता की ज़रूरत हो वहाँ भाषण करने वाले पर दया आती है.कभी कभी लगता है कि कुछ लोगों को कविता की ह्त्या करने के नाम दोषी करार देना चाहिए.कुल मिलाकर हमें चयन करना होगा कि कौन कवि है और कौन 'अकवि'
- साहित्य हमें बेहतरी की तरफ बढ़ाता है.साथी की सहायता करना सिखाता है.सही होने की तरफ बढ़ाता है.हमविचार में अंधा विश्वास करने को प्रेरित करता है.हमारी नियत अगर साफ़-सुथरी होती है तो साथी फटाक से आ जुड़ते हैं.अनायास आयी मुसीबत और किसी मुश्किल में काम आए दोस्त सदैव याद रहते हैं.फेसबुक ने मुझे कई अच्छे मित्र दिए हैं.इसे सिर्फ आभासी माध्यम मानने वाली तमाम परिभाषाओं को मैं खारिज करता हूँ.
- खुश खबर यह कि हमारी दीदी और हिन्दी की जानकार डॉ.रेणु व्यास का राजस्थान विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर पद पर चयन हो गया है..बस उनके मन का हो गया.उन्हें बधाई.
- पूंजीपतियों के खिलाफ छेड़ी वैचारिक जंग के अधबीच मौक़ा मिला तो उन्हीं से 'तमगा' ले लिया,पार्टनर तुम्हारी 'दिशा' क्या है ?जो अरसे से हमारे खिलाफ बोलता रहे उसे ही अवार्ड दे दो स्याला बोलना बंद कर देगा.(गज़ब की डिप्लोमेसी है.)अवार्ड देकर भी कई संस्थान और अतिथि 'बड़े' बन सकते हैं.(आतमचिंतन)
- बहन अपने ससुराल,माँ अपने पीहर,पत्नी अपने ससुराल,पिताजी अपने पीहर,मैं यहाँ चित्तौड़ में,रक्षाबंधन अधरझूल में,बाज़ार सराबोर,शहर पर उमड़ते गाँव,राखियाँ और बहिनों का स्नेह.सबकुछ दिल को गहरे तक छूता हुआ.
- की-बोर्ड नया ले आया-ढाई सौ रुपये में.मोइले ठीक करा लाया ढाई सौ रुपये में.पत्नी के फोन में माइक लगवा लाया सौ रुपये में.साउंड सिस्टम की आईसी उड़ गयी थी तीन सौ रुपये में लगवाई.एक केबल खराब थी चालीस में बदलवाई.अब मुआमला ठीक है.अभी अरसे बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहेब और उस्ताद अमज़द अली खान साहेब की जुगलबंदी सुन रहा हूँ.
- मेवाड़ी बोली में 'पकौड़ी' को 'भज्या' बोलते हैं ऐसी बारिश में अक्सर हमारे यहाँ चरके(नमकीन) और मीठे भज्ये बनते हैं.बचपन में तो बारिश आते ही पिताजी भज्ये का 'गोरण' तैयार करने बैठ जाते थे.और हम कटोरियाँ/प्लेटे.
- कवितायेँ लिखता हूँ,कवितायेँ पढ़ता हूँ मगर जाने क्यों 'कवि' कहलवाना नहीं चाहता हूँ.दो बातें हैं एक तो आजकल सभी कवि हैं.दूसरा जो वाकी कवि हैं बड़े नामचीन और गंभीर किस्म की कविता के धनी उनके आसपास हमें पहुँचने में हमारी उम्र खप जायेगी.'कवि' होने से ज्यादा आजकल 'कवि नहीं होना' महत्वपूर्ण होता जा रहा है.जिसके पास पैसा है उसका कविता संग्रह है,विमोचन है,तारीफों की समीक्षाएं हैं,तारीफ़बाज साथी हैं.टेंट-नाश्ते-जाजम और कुर्सियां सब उसी का इंतज़ाम है कितनी मेहनत से मुआमला जमाया है कवितायेँ ही तो कमजोर है.
- लोग हमारे एक बुलावे पर आयोजन में आ जुटते हैं ये हमारी साफ़ नियत का कमाल है.हम मेहनत करते हुए लोगों को बड़ी आत्मीयता से बुलाते हैं.चित्तौड़ बहुत छोटा कस्बा है यहाँ जो भी रचनाकार आता है तो आयोजन में गहरी समझ के पाठकों की संख्या पचास-साठ के आसपास देख अचरज करने के साथ खुश होता है.सूरज प्रकाश जी के कहानी के पाठ ने सभी को बांधे रखा.अच्छी और यादगार शाम.शाम बड़ी यादगार साबित हुयी बारिश में भीगते हुए मैंने कथाकार सूरज प्रकाश जी को चित्तौड़ दुर्ग अपनी बाइक पर ही घुमाया,वे भी सालों बाद बाइक पर बैठे.
- बेटी अनुष्का जो पहली दफा स्पिक मैके के किसी बड़े अधिवेशन में प्रतिभागिता के तौर पर इस बार चेन्नै गयी थी.यहाँ चित्तौड़ में स्पिक मैके आयोजन का कई बार हिस्सा रही मगर ये सात दिन की पाठशाला पहली बार ज्वाइन की.बहुत मस्ती की.अपनी मम्मी के साथ बांधनी की कार्यशाला में रही.रूचि कथक-भरतनाट्यम में थी मगर अभी उम्र छोटी है.वैसे भी मैं फोटो-खींचने में व्यस्त था और माँ अपने स्कार्फ के लिए नंग बाँधने और उन पर रंग चढ़ाने में.खैर.ये चित्र फैजाबाद के हमारे दोस्त अनुराग ने खुद खींचकर भेजा है जो कार्यशाला के बाद स्टेज पर अपने काम के सार्वजनिक प्रदर्शन का है.एक छोटे स्कार्फ के साथ अपनी स्टाईलिश मुद्रा में अनुष्का.मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि मेरी रुचियों से पत्नी और बेटी की रुचियाँ मेल खाने लगी है तो अब मुझे भी सहूलियत है.
13 अगस्त, 2014
Loading...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें