देख नजारा थम गया मैं भी आज
की जहां
किले में थमी हुई देखी
अलग-अलग इमारतें
की जहां
किले में थमी हुई देखी
अलग-अलग इमारतें
एकसाथ आपस की बातें बेलती
कुछ दूर ऐंठी हुई हवेलियाँ थी
गुर्राते महल थे खड़े एकओर
और अन्तोगत्वा गाँव के बाहर
धकेली हुई,मज़बूरन विकसित
नई आबादी की सी बड़बड़ाती झुग्गियां
थरथराती मगर जुटाती हुई साहस
फुसफुसाने की हिम्मत जुटा
कहती मन में उठती अपनी टीस
दबी हुई चिंगारी सी फुंफकारती
जाने कब से चुप बैठी ये
जुग्गियाँ
जुग्गियाँ
घर में सजीधजी अबला सी
अब तक एकतरफ फैंकी हुई सी
मौन तोड़ने की सोच घर से निकली
अड़ने को महल-मीनारों से
देखो करतब अब शोषक और शोषित का
कौन सुने और कौन सुनाए
कौन दबे और कौन दबाए
देख नजारा थम गया मैं भी आज
अब तक एकतरफ फैंकी हुई सी
मौन तोड़ने की सोच घर से निकली
अड़ने को महल-मीनारों से
देखो करतब अब शोषक और शोषित का
कौन सुने और कौन सुनाए
कौन दबे और कौन दबाए
देख नजारा थम गया मैं भी आज
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