Loading...
27 जून, 2012

क्षणिकाएं-2

प्यार में इन दिनों 


(1)
प्यार में इन दिनों
एकाध दिन छोड़ कर
याद आ ही जाती है

पहली मुलाक़ात
एतबार से उबकती हुई
नज़रें लबालब
मुझ पर ही टिकी
मुस्कराती हैं आज भी


(2)
हर वक़्त ख्यालों पर
कब्जा है
एक ही शख्स का
तमाम असर भी उसी का है
आजकल दिल पर
राज़ सच कहूं

(3)
जब भी मिले
रास्तों में कभी
मौड़  पर टकराए
दो जोड़ी आँखें
बतियाती रही
आपस में देर तक
चुप रहे दो जोड़ी
होंठ हमारे


(4)
फुरसत मिलते ही
तमाम यादें आ जाती हैं
वहीं
जहां ख़यालों की बर्फ
इर्द-गिर्द ही
जमती और पिघलती हैं
आजकल बार बार

(5)
गुज़र ही जाता है
दिन
ज़िंदगी की दौड़ में
अफसोस
रात का है
यादों के संग अकेले
काटे भी तो कब तक
करवटों के बीच की
ये रात
लम्बी लगती है


(6)
मुश्किल सफ़र
आसान
हो गया
हर प्रश्न का ज़वाब
हासिल
सब कुछ हो गया
मिले वो जबसे
इधर बस्ती
में मुझसे


(7)
दो दिन 
वो नाराज़ रही
बाकी दो दिन
मैं रहा नाराज़
सच कहें 
यूं ही गुज़र गए
प्यार के वो चार दिन


(ये क्षणिकाएं आकाशवाणी चित्तौड़ के लिए थीम म्युज़िक प्रोग्राम 'प्यार में इन दिनों '' के दौरान 27-06-2012 को रात नौ बजे प्रसारित की जा चुकी है।)

1 comments:

 
TOP