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01 जुलाई, 2013

01-07-2013

मल्लाह और नदी तीर पर नहाते बच्चों से नज़र बचाकर 'नाव' भी 'घाट' से बतियाने का वक़्त जुटा ही लेती है।एक यात्रा के ख़त्म होने और दूसरी के शुरू के बीच का ये युगल मिलन कितना रोमांचभरा होता है ना?
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आंकड़ों से भरपूर हिन्दी से मेरा खासा परिचय हो रहा है। दिमाग में तिथियाँ,साल और लेखक अपनी अप्रकाशित कृतियों सहित घूम रहे हैं।उदयपुर में अपनी भी 'हिन्दी में नेट' परीक्षा निपट गयी।मेरे लिए 'हिन्दी में नेट' परीक्षा इसी साल दिसंबर में फिर इंतज़ार कर रही है। अबकी बारी तो चल गया,अब लगना ही पड़ेगा।अब सीरियसली पढूंगा।इसे आप 'मसाणिया राग' भी समझ सकते हैं।मेरे चिंतित और शुभचिन्तक मित्रों के लिए बता दूं आज का पेपर इतना भी नहीं 'बिगड़ा' कि 'परिणाम' का इंतज़ार तक ना करे।इसी बीच एक सूचना कि प्रयास संस्थान, चूरू की ओर से प्रतिवर्ष दिया जाने वाला प्रतिष्ठित घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार वर्ष 2013 के लिए आलोचक-संपादक पल्लव को दिया जाएगा।दिल खुश हुआ।आधार प्रकाशन, पंचकूला से वर्ष 2011 में प्रकाशित उनकी आलोचना पुस्तक ‘कहानी का लोकतंत्र’ के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। 
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ईस्कूल खुल गयीआज।हम टाईमपर हीथे।तीन कमरेकी हमारी'प्राईमरी यूनिवर्सिटी' के तीनों कमरेका झाड-पोंछ हमनेही कियाहालांकि बादमें हमारेपहली सेपांचवीं तकके तेईस  मेंसेसत्रह शोधार्थीभी वहाँपहुँच गएथे।सफाई केनाम पहलादिन भीखूट हीगया।ये जमावड़ातब संभवहुआ जबहमने बमुश्किलढूंढ करस्कूली घन्टीका टंकाराबजाया।बस्ती को बेधती घंटी सुनसब जमाहुए।पोषाहार भले नहीं आया मगरमाया,अंजली,सुगना सेलेकर भारती,शिवा औरसंतरा सब गए।नहींआये तोवे मित्रजो अपनेननिहाल मेंही अबभी ऊँघरहे हैं।हालांकिआज आयेसाथियों मेंकुछ तोसौभाग्य सेनहा-धोके आयेबाकी फंफूदसने कपड़ोंसहित हमारेसाथ थे।मतलबहमारे लिएपढ़ाने केअलावा भीबहुत सेउद्देश्य पारनेबाकी हैं।पूरेसमय जमकरकाम किया।आखिरमें जबनसें तनगयीं तबउठे।हो गयीदिहाड़ी नौकरीपक्की

इधर पूरे रास्तेदेखता गया।खेतमें बीजडाले जाचुके थे।गाँवऔर रास्तेपड़ती बस्तियोंके बुजुर्ग,महिलाओं सहितसभी लोगसरकारी योजनाओंके फायदेलेने पंचायतमें इकठ्ठानज़र आये।पुलियाओं केनीचे बहतेनदी-नालेअभी खालीही थे।प्याऊके धतोलमें नहातेग्रामीण भीदिख हीगए।


अरे एक बातऔर किदुर्भाग्य से मेरा डॉक्यूमेंट्री बर्थडे आजही पड़ताहै।मुझे आजके दिनजन्मदिन कीशुभकामनाएं कम ही जचती है।फिरभी उनमास्टर जीका शुक्रियाजिन्हें मैंनही जानता।अरेवही गुरूजीजिन्होंने मेरा यही नया वालाडॉक्यूमेंट्री जन्म दिन फॉर्म मेंभरके मुझे   फिर से 'कागज़ीमाणिक' बनाया।दुपहरतो गयीअब शामशायद रेडियोपर गीतबजाने मेंगुजरना चाहतीहैं।

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