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09 मार्च, 2014

09-03-2014

  • हमारे मथुरा के मित्र मोहम्मद गनी की नयी जन केन्द्रित फिल्म Quaid आयी है जिसमें वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर कटाक्ष है.गनी भाई से हुयी बातचीत में वे बताते हैं कि वे असल में बचपन से ही थिएटर के लिए ही काम करते रहे.हाल के कुछ सालों में उन्होंने कुछ छोटी-छोटी फ़िल्में बनायी है.ये फीचर  फिल्म लगभग नब्बे मिनट के करीब है जो ज्ञानपीठ से छपी और सम्मानित कहानी पर आधारित है.खासकर शैक्षणिक संस्थाओं में इसकी स्क्रीनिंग की जानी बेहद ज़रूरी है.वे आगे कहते हैं कि हमारे देश में सिनेमा का यह थर्ड फेज है.जहां हमें परम्परागत सिनेमा से हटाकर कुछ करना है.फ़िल्में लाखों-करोड़ों में ही बन सकती है जैसी भ्रामक धारणाओं को तोड़ना होगा.बीते कुछ सालों में तकनीकी बदलाव और नित-नए साधनों से अब फिल्म बनाना सस्ता और सुलभ हुआ है.कम बजट में भी बहुत कुछ सार्थक करने की गुंजाईश है.अब ज़रूरत इस बात है कि हम इस थर्ड फेज के सिनेमा का ठीक से स्क्रीनिंग कर जनता को असलियत से वाकिफ करवाएं.छोटे समूह में एक प्रोजेक्टर पर फिल्म दिखा कर हम उस पर चर्चा आयोजित करें इसी में हमारी जीत है.
  • स्त्रियों को पुरुषजात के विरुद्ध खड़ा करने के ग़लत रास्ते पर धकेलने के बजाय वाले स्त्री विमर्श का मैं भी पक्षधर हूँ.सारे पुरुषों को एक ही डंडे से हाँकना ग़लत होगा.हाल के कुछ सालों में स्त्री वर्ग की प्रगतिशील स्थितियों से आशान्वित हूँ.तथाकथित मर्दजात अगर स्त्री जाति के प्रति अपनी कथनी-करनी के बीच का दोगलापन कम करना शुरू करे तो 'महिला दिवस' की कुछ सार्थकता बने,आओ स्त्री शक्ति के बढ़ते प्रभाव को सलामते हुए उसके विकास को स्वीकारने का अभ्यास करें.
  • एक आदमी जो जीवनभर पैसे कमाने में पड़ा रहता है मरने के बाद कुछ मतिमंद लोग ऐसे मरों को कुछ सहसा उपजी पदवियों से नवाजते हैं कि हम भी अचम्भे में पड़ जाते हैं गोया शिक्षाविद,समाजसेवी,सामाजिक कार्यकर्ता,चिन्तक,जानकार. जैसे इन बड़े नाम वाली पदवियों के किरदारों को होने में मिनटों का समय ही लगता हो .जैसे इन शब्दों ने अपना अर्थ ही खो दिया हो.
  • अपने अंचल का यथार्थ लिखतीं साहसिक कवयित्री निर्मला पुतुल जी का एक नया कविता संग्रह आ रहा है.वे जब कविता रचती हैं तो अपनी कविता में एक कविता से बहुत आगे की बात कहती है.सामयिक परिदृश्य में एकदम अनसुनी आवाजों को स्वर और मंच देने वाली रचनाकार हैं निर्मला जी.उल्लेखनीय है कि आधार प्रकाशन द्वारा युवा कविता सीरीज के अंतर्गत प्रकाश्य उनका नया कविता संग्रह ' बेघर सपने ' प्रेस में है. आधार वालों ने कहा है कि विश्व पुस्तक मेला पर हम इन्हें जारी नहीं कर पाये अब अप्रैल माह में इन्हें जारी किया जा रहा है ।निर्मला जी समकालीन कविता में एक प्रतिनिधि स्वर माना जाना चाहिए.उन्हें अनेकों-अनेक बधाइयां.
  • हमारे वरिष्ठ साथी डॉ अनंत भटनागर के सानिध्य में आयोज्य इस महत्वपूर्ण आयोजन में जाने का पक्का मानस बन गया है.इस तेरह मार्च को अजमेर में मित्रों से ज़रूर मिलना होगा.लोढ़ा जी और राजाराम भादू जी को पहली मर्तबा सुनूंगा.हेतु जी को उदयपुर के बाद दूसरी बार.प्रेम भाई से एक बार ही उदयपुर फिल्म फेस्टिवल में मिला था.बतौर वक्ता पहली बार सुनने का जोग पड़ेगा.यात्रा में चित्तौड़ से मेरे अग्रज डॉ राजेश चौधरी का चलने का मानस है.कुलमिलाकर इस जाजम को बिछाने के लिए अनन्त भाई का सार्वजनिक रूप से भी शुक्रिया और अनन्त शुभकामनाएं.

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