अभी ज़िंदा हूँ कुछ दिन
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सभी बोल रहे हैं
सभी छप रहे हैं
लिख रहे हैं सभी आजकल
चारों तरफ आवाजें हैं
बोलने,छपने,बेचने और लिखने की
सुन नहीं रहा कोई
पढ़ नहीं रहा कोई
देख तो एकदम नहीं रहा है
कोई
तल्लीनता,निस्वार्थ,आत्मबोध,
जैसे शब्द निरर्थक करने
में लगे हुए हैं सभी
सभी बेचने में लगे हैं
अपना ज़मीर और ईमान
मालूम है बाज़ार में जबकि
ऐसे चीज़ें अब खरीदता नहीं
कोई
दौड़ के इतने अंदाज़
देख रहा हूँ पहली मर्तबा
कूदाफांदी जारी है
टांग अड़ाई है चालू
सब डूबे हैं अंधे कुए
अपनी अपनी खोहों में
अमर होना चाहते हैं
सब के सब
अभी के अभी
दुनिया को इतनी फुर्ती
में
पहले कभी नहीं देखा
सच्ची कहता हूँ
उनकी हाल की घोषणा के
अनुसार
महान होना
उनकी अंतिम इच्छा है
होने से ज्यादा दिखना हो
गयी है फितरत उनकी
खुद की जीवनी खुद ही लिख
रहे हैं
रिटायरमेंट के अभिनन्दन
का टंकण
कर रहे हैं खुद ही
इससे ज्यादा जल्दी क्या
होगी?
और इससे बड़ी ख़बर क्या
कि आदमी बिना कुछ किए अब
अमर होने लगे हैं
साथी, इन दिनों
इतना सबकुछ देख मन मर रहा
है
इधर की ख़बर तो यही है
लौटती डाक से
ज़रूर लिखा ए दोस्त
अपने शहर का राजी-खुशी
मैं हूँ बड़ा बेसब्र
तुम्हारी चिट्ठी पढ़ने के
वास्ते
अभी ज़िंदा हूँ कुछ दिन
तुम्हारे शहर की ख़बर जान
लूंगा तो
मरने का निर्णय करने में
आसानी होगी
सन 2000 से अध्यापकी। 2002 से स्पिक मैके आन्दोलन में सक्रीय स्वयंसेवा।2006 से 2017 तक ऑल इंडिया रेडियो,चित्तौड़गढ़ से अनौपचारिक जुड़ाव। 2009 में साहित्य और संस्कृति की ई-पत्रिका अपनी माटी की स्थापना। 2014 में 'चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी' की शुरुआत। 2014 में चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल की शुरुआत। चित्तौड़गढ़ में 'आरोहण' नामक समूह के मार्फ़त साहित्यिक-सामजिक गतिविधियों का आयोजन।कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर। 'हिंदी दलित आत्मकथाओं में चित्रित सामाजिक मूल्य' विषय पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोधरत।
प्रकाशन: मधुमती, मंतव्य, कृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित।माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं। सम्पर्क-चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान। मो-09460711896, ई-मेल manik@spicmacay.com
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