19 मई 2021
जब हमारी साँस अंतिम दौर में है तो प्रतिनिधि कहते हैं कि शंख बजाओ। हम अस्पताल मांग रहे हैं वे कह रहे हैं गोबर का लेपन करो। हमने कहा गाँव में नर्स बहन जी अकेली काम करते हुए थक जाती हैं एक सहायक का पद और भर दो। वे बोले अभी नीम की पत्तियाँ जलाकर घर में धुंआ करो। उन्होंने कोरोनिल कहा हमने कोरोनिल किया। उन्होंने नीम-गिलोय पुकारा हमने काढ़ा लिया। गरारे रेगुलर हैं। भाप ले रहे हैं। न्यूज नहीं देखते हैं। टूलकिट, ब्लैक फंगस, सिंगापुर विवाद, गाज़ा पट्टी, ताऊ-ते, टू-डीजी जैसी टर्मिनोलॉजी पर हमारा ज्ञान कम है। मिलने वालों में मरने वालों की ख़बरें नज़रंदाज़ कर रहे हैं। शोक की बेला में मंगल-गीत गाने का साहस जुटा रहे हैं। शरीर में रीड की हड्डी भी होती है, दिमाग से यह निकालकर रख दिया है। लोकतंत्र में आस्था को सहेज कर रखा है। अब भी हम राजधानी की तरफ देखते हैं। देश के प्रथम नागरिक में अब भी हमारी उतनी ही आस्था है। सोते समय हमारा मूँह भोपाल-जयपुर-दिल्ली वाली दिशा में रहता है। आपके कहे अनुसार हमने मतदान किया है। अगर आप योग्य नहीं हैं तो अपनी योग्यता बढ़ाइएगा। हमारे मोबाइल में नेताजी के अलावा किसी का नंबर ही नहीं है। हमारे जीने-मरने का सामूहिक निर्णय आपके जिम्मे है। मतदान के बदले हमने न तो पाँच सौ का नोट लिया था न ही शराब की बोतल। हम निर्दोष हैं सरकार। हमारा अब भी आपमें विश्वास कायम है। क्या आपको इस बात का अहसास है सर जी।
‘लोकतंत्र जनता
का, जनता के द्वारा और जनता के लिए तंत्र है’ यह सरल वाक्य आज भी हमें उतनी ही सहजता
से अपनी तरफ खींचता है जितना कक्षा नौ में आकर्षित करता था। यह परिभाषा हमने खाली
नवीं उत्तीर्ण करने के लिए नहीं रटी थी सर। संबल चाहिए तो हम देंगे। अगमचारी आप ही
रहेंगे। मुसीबत में झंडा छोड़ जा नहीं सकते आप। राय लीजिएगा मगर काम कीजिएगा। सनद
रहे कि आपके एक बयान पर हम अंधे की तरह अनुसरण करते हैं। आप मास्क नहीं लगाएंगे तो
हम भी उतार फैंकेंगे। बातचीत और स्नेह मिलन में दो गज दूरी कितनी होती है?, इसका
नाप आपकी जीवन शैली से अंदाज़ लगाकर ही हम सीखते हैं यह याद रखिएगा। व्यवस्था में
व्यवस्था जैसा कुछ नहीं है तो पैदा कीजिएगा। लोगों का भरोसा टूट रहा है। लोकतंत्र
की उस परिभाषा को मजबूत करने वाली हमारे संविधान की प्रस्तावना को रोज़ाना पढ़िएगा।
आपको ताकत और दिशा दोनों मिलेंगी। सच्ची बता रहे हैं। यह हमारे सामाजिक वाले सर ने
सीखाया था। वैसे हमें अपने मतदान पर गर्व है बस उसकी इज्ज़त नेताजी अब आपके विवेक
पर टिकी हुई है। आपके एक बेतुके बयान से हमारा सिर नीचा होता है जनाब। हम देख रहे
हैं आप आगे बढ़िएगा। आप जब-जब भी बेहतर समाज के लिए कदम बढ़ाएंगे हम अपनी छत से आपके
लिए तिरंगा लहराएंगे। हम विश्वास तोड़ने वालों में से नहीं है। असल में जनता हैं हम।
निरीह मत समझिएगा। जनता कथनी-करनी में भेद नहीं जानती साहेब। इस बार आपके लिए टार्गेट
थोड़ा-सा मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं। आसान काम के लिए तो हम खुद ही काफी हैं।
कठिन काम के लिए ही हम प्रतिनिधि चुनते हैं। देश आपके होने से है। आपके सोने से
देश सो जाता है साहेब। जनता आपको हौसला दे रही है। आप ऐसे टरका नहीं सकते हमें। अभी
हम सभी का पाया कमज़ोर चल रहा है। हम हर पल याद रखते हैं कि हम आपकी मतदाता सूची के
नामजद लोग हैं। जब भी पेट-दर्द होगा हम आपके ही किंवाड़ की सांखल बजाएँगे।
असमय की बरसात का
आज दूसरा दिन था। चाय के ठीक बाद क्या भाया कि उस्ताद शाहिद परवेज़ का सितार पर
बजाया राग मेघ-मल्हार का साठ मिनट का ट्रेक लगाकर हल्का-फुल्का व्यायाम और फिर
मेडिटेशन किया। प्राणायाम आदि पहले भी करते रहे मगर अब यह जीवन से एकदम सीधे
समीकरण के साथ जुड़ गया है। प्राण-वायु को लेकर हम इतने संवेदनशील कभी नहीं थे। जीवन
में एक दर्जन से भी कम लगाए वे तमाम पौधे आज फिर से याद हो आए। इधर विद्यार्थी
द्वारा उपलब्ध करवाई गयी नीम-गिलोय से रोज़ाना काढ़ा पी रहे हैं। यह गुरु-शिष्य की
प्रगाढ़ता बढ़ने का स्पष्ट संकेत है क्योंकि जब भी अमानदस्ते में गिलोय कूटता हूँ,
गुणवंत याद आता है। दिन घटनाविहीन ही गुजर गया। आज लम्बी बात किसी से नहीं हुई।
जिनके फोन आने थे उन्हें उनकी अचानक आई व्यस्तता ने कहीं का नहीं छोड़ा होगा। मैं ऐसे
मित्रों को माफ़ करने के लिए ही शाम में थोड़ी सी फुर्सत रखता हूँ। वादे करना और उन्हें
भूलना मनुष्यता की अहम् निशानी है। सवेरा थोड़ा सा सुकून देता है बस। जीवन में ऐसा
अनुभव होता है जैसे खुशी का खाली आभास बचा है बस। जैसे-जैसे दोपहर आकार लेने लगती है
सूचनाएं अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं। फिर लगता है कि दुःख का पसारा ज्यादा
है। होशंगाबाद से भाई अशोक जमनानी जी की सबसे छोटी बहन राखी दीदी के पति यानी
हमारे बहनोई जी चल बसे। असमय ही कहेंगे। दीदी से दो बार मिले थे हम। उनके दो
बच्चों की सोचकर ही दिल भर रहा है। अशोक दा से बात करने की हिम्मत नहीं है अभी।
कितना और सहेंगे। कब समाप्त होगा यह दारूण संकट।
कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर। 2020 में 'हिंदी दलित आत्मकथाओं में चित्रित सामाजिक मूल्य' विषय पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोध।
प्रकाशन: मधुमती, मंतव्य, कृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित।माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं। सम्पर्क-चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान। मो-09460711896, ई-मेल manik@spicmacay.com
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