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21 जनवरी, 2012

21-01-12

(जो डायरी एक साल बाद लिखूंगा अभी लिख दी )

समय बड़ा विकट है.एक तो सर्दी,ऊपर से सूचनाओं के जाल में उलझा आदमी बहुत कुछ बटोरने में लगा है.हाफटा भरने की कोशिश वाले ये तमाम लोग अपने निजी जीवन में बहुत कम खुश है.सारे काम एक साथ साधने को तत्पर आदमी दौड़ रहा है. कितना माल हाथ आ रहा होगा ये बात तो वो खुद ही बता सकते है.इसी विकट समय में आज भी कुछ लोग हमारे आस-पड़ौस में हैं जो बड़ी तन्मयता से एक ही काम को लेकर लगे हुए हैं. मैं इन दूजी जात(जो एक ही काम को साध को अच्छे से साध रहे हैं.) के आदमियों का बड़ा कायल हूँ.पहली जात के आदमी से मेरी वृति मिलती है.दिनभर में स्कूल भी संभाल लूं,घर-परिवार के लिए आटा पिसा लाऊँ.कविता भी कर लूं,मित्रों के हित काम-चलाऊ ब्लॉग/वेबसाईट बना लूं.दिन के बारह-पच्चीसे-क फोन अटेंड कर लूं.दो-चार बाते इधर की उधर कर लूं.और फिर तीन से चार घंटे इंटरनेट का सफ़र तय कर लूं.ये तमाम करने के बाद भी फिर मित्रों से कहूं कि आज़कल मोटापे की शिकायत है,कोई अच्छा उपाय?,गैस बनने लगी है.कोई रामबाण उपाय?........तरह-तरह की बीमारियाँ....

अब दूजी जात के आदमी से मुझे मित्रता कर मुझे उनसे सुबह/शाम को पैदल घूमना सीखना है,कसरत और दो-चार प्राणायाम की तरकीबें सीखनी है.इन दिनों प्रचलित तीने-क साहित्य की पत्रिकाएँ घर मंगवाना शुरू करवानी है.घर में ढाई साला बेटी के साथ कैसे वक्त बिताया जाता है,इस काम को सीखने हेतु ट्यूशन करनी है.मोटापे के लिए कोई होम्योपैथिक दवाई का पता लगाना है.दिमाग में फ़ैल रहे चिडचिड़ेपन के लिए मन को शांति देते मौन को साधने की बैठक करनी है.मैं फिर से बदलना चाहता हूँ.फेसबुक का खाता बंद करना चाहता हूँ.छपे हुए कागज़ ही पढ़ना शुरू करना चाहता हूँ.फोन पर कम आमने-सामने ज्य़ादा बात करना चाहता हूँ.मैं शांति चाहता हूँ.नदी किनारे या पर्वत ,जंगलों में देर तक बैठना चाहता हूँ. मुझे नहीं चाहिए तमाम सूचना अभी की अभी.मुझे आस-पड़ौस और घर-परिवार के अलावा बहुत कम सूचनाओं की ज़रूरत है अभी जीने के लिए.मैं अभी फिलहाल जीना चाहता हूँ.

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