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29 फ़रवरी, 2012

29-02-2012

इस बार फरवरी उनत्तीस दिन की है.कल ही नगर में इतिहासविद राजेन्द्र शंकर भट्ट को सुनने गया.असल में वे उदयपुर में हाल हुए महाराणा सम्मान समारोह से नवाजे जाने पर जयपुर लौटते हुए रास्ते पर थे. मीरा स्मृति संस्थान द्वारा उनका अभिन्दन और उदबोधन प्लान किया हुआ था.चंद्रलोक सिनेमा के ठीक बाजू में बनी गुलशन वाटिका में जहां शाम छ; बजे से आयोजन के पूरे होने तक उदबोधन के साथ रोड़ पर आते-जाते वाहनों की आवाजें भी कान में घुसती रही.ये मेरे लिए काँटों के साथ गुलाब का संयोग था.तय समय पर शुरू हुए आयोजन में हम चार आदमी एक साथ पहुंचे.हिन्दुस्तान जिंक में अधिकारी और कविता के शौक़ीन डॉ. चेतन खिमेसरा,संस्कृत की प्राध्यापिका डॉ.विनया शर्मा,हेमंत शर्मा.सभी चहरे पर एक अदद मुस्कान के साथ.माईक पर संयोजक मेरे अभीष्ट को पूरते सत्यनारायण समदानी ही खड़े/बोलते मिले.हर तरह के आम आयोजन की तरह इस बार भी लम्बी भूमिकाओं के बाद भट्ट जी को सुनना मिला.स्वागत के पुल बांधे गए.मालाएं लादी गयी.पिचानवे की उम्र पारते भट्ट जी को चार आदमी स्टेज पर लाए.इस स्थिति मात्र से ही मैं अभिभूत था.

शहर से बुलाए तमाम बुजुर्गों के बीच मैं अकेला ही तीस से नीचे की उम्र का था.बाकी वरिष्ठ नागरिक की जात.हाँ कुछ युवा केटरिंग वाले उम्र के इस गणित में मेरा साथ निभा रहे थे.एक से एक नामी आदमी.हर संस्थान,विचारधारा के लोगों द्वारा भट्ट जी का अभिनन्दन.स्टेज पर बैठे तमाम अथिति भी बुजुर्ग.मगर सभे सुनाने को तैयार और पूरी तरह से सतर्क.

संगोष्ठी का विषय पद्मिनी के सन्दर्भ में चित्तौड़ का इतिहास.तमाम चिंताएं.चित्तौड़ को लेकर अब तक किसी समग्र इतिहास संकलन की कमी ज़ाहिर की गयी. भीलवाड़ा के गोकुल लाल असावा ने ऐसे ग्रन्थ को लिखने की हामी भरी.संस्थान के अध्यक्ष बी.एल.सिसोदिया ने भी भूमिका में पद्मिनी के बजाय आज की शिक्षा व्यवस्था पर बोला.मैंने भट्ट जी को पूरी तन्मयता से सूना पानी उम्र के लिहाज़ से जितना वे बोल पाए मुझे कुछ भी नया नहीं लगा.पद्मिनी को जितना हम सोचते थे उसे हे लच्छेदार भाषा में बखाना गया.मुझे उनके पद्मिनी पर प्रकाश्य जीवनी का इंतजार है.इतिहास का विद्यार्थी  होने के मुझे वैसे इस आयोजन में बहुत से नए तथ्य जानने को मिले.शुक्रिया मीरा स्मृति संस्थान.

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