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24 मार्च, 2013

24-03-2013

आयोजन के एक महीने पहले से चिंतन और चिंता का दौर।साथियों की तरफ से आती हुयी सलाहें और मशवरों के बीच की चर्चाएँ।कभी चार का जमावड़ा राजेन्द्र सिंघवी के घर।तो कभी राह चलते प्रायोजकों के जुगाड़ में हरीश लड्ढा के साथ अनायास एक मीटिंग।उमेश जी के साथ आमंत्रण पत्र की सेटिंग में दिमागी उठापठक।शब्दों/वाक्यों को लेकर शब्दकोशों से पड़ताल।इसी बीच राजेश चौधरी के साथ अरसे बाद की एक चाय पर बातें।

बड़ा वैचारिक माहौल हैं।नाम के पहले डॉ लिखें या ना लिखे। आयोजन में अतिथियों को मानदेय का स्वरुप क्या हो? नास्ते का मीनू। रास्ते के रेल टिकट। रुकने की रूम बुकिंग।आयोजन स्थल पर एन वक़्त धूप कितनी रहेगी।पंखें लगाने होंगे कि नहीं।बीते आयोजन में जानबुझकर नहीं आने वाले महानुभावों का इस बार क्या करना है।बैनर वही चल जाएगा या फिर नया बनाएं।कार्यक्रम के शीर्षक को लेकर बहुत सी बातें।वक्ताओं के क्रम और सभी के लिए समय सीमा निर्धारण पर पर्याप्त चर्चा।एक इत्मीनान और लोकतांत्रिक अनुभूति के साथ आयोजन के पहले का माहौल रुच रहा है ।कम काम करो मगर पूरी तसल्ली से।

अधिकाँश वक़्त अपनी माटी के पहले मासिक अंक पर खर्च होता दिख रहा है।पत्रिकाएँ अदल बदल कर पढ़ रहा हूँ।हंस,वसुधा,कला समय और अचानक चुरू वाले सुरेन्द्र डी. सोनी का कविता संग्रह 'मैं एक हरिण और तुम इंसान'।खबर मिली हमारे वरिष्ठ मित्र हरीश करमचंदानी जी को उनके कविता संग्रह 'समय कैसा भी हो' के लिए राजस्थान साहित्य अकादेमी का कविता के लिए इस वर्ष का सुधीन्द्र सम्मान मिल गया।उन्हें बधाई।कभी कभी लेखक खुद आगे जाकर सम्मान की इज्ज़त बढ़ाते हैं।इस बार शायद ऐसा  ही हुआ।पूरी सम्मान सूचि में शामिल होने से छूट गए रचनाकारों के साथ पूरी सहानुभूति है।

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