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09 मई, 2013

09-05-2013

फलाने ने ठीक नहीं बोला।अलाने ने बीच भाषण में पर्ची पकड़ा दी।अमुक ने समय ज्यादा ले लिया।एक महाशय पढ़ते कम,बोलते ज्यादा है।क्लासिक उदाहरण देने वाले का विशद अध्ययन होना चाहिए और उम्र भी ज्यादा तभी अच्छा लगता है।एक मौलिक बात करता है।तो दूसरा वाला टीप-टीपा के कहता है।एक की राय पत्र-पत्रिकाओं में छपे आलेखों से दिशा पाती है।एक गहन अध्ययन के बाद चिंतन कर अपनी बात करता है।एक साहित्य से ज्यादा संस्कृति में रूचि रखता है।एक दिखाता कुछ और है करता जाने क्या है।सारे-के-सारे एक साथ कम दो-दो करके ज्यादा मिलते हैं।जब भी दो मिलेंगे तीसरे की बात करेंगे।मामला गंभीर है।कोई कड़वी बात सुनना नहीं चाहता।कोई आलोचना से टूट जाने के डर से ग्रसित है।एक अपनेआप को विचारधारा के मुद्दे पर अलग-थलग पाता है।बाकी भी ठीक-ठाक स्थिति में हैं।खिचड़ी रोज पकती है।एक दिन यहाँ दूसरे दिन वहाँ।मुझे मालुम चल गया है कि अगर साहित्य यही अलगाववाद सिखाता है तो मुझे फिर दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा।छोटे से कस्बे में अपने-अपने दड़बे।मन खराब करने लायक माहौल।

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