तद्भव का पच्चीसवां अंक पढ़ते हुए।सम्पादक अखिलेश जी को सलाम कि उन्होंने गज़ब का संकलन निकाला है।नामवर जी के संस्मरणों से शुरू।नामवर जी ने बहुत बेबाकी से अपने बुढापे में सारे राज़ खोलते हुए अपने बीते को लिखा है।वे काशीनाथ सिंह द्वारा परिवार की सेवा के साथ ही उन्हें समझने लके लिए सार्वजनिक रूप से पहली बार धन्यवाद देते हैं।महादेवी वर्मा के बाद कोई बड़ी कवयित्री नहीं होने के सवाल उठाते जोधपुर वाले रमाकांत जी को 'कृति ओर' में पढ़ते हुए भी समय बीता। ऑडियो बातचीत सुनते हुए एक बार फिर ग्वालियर वाले अशोक कुमार पाण्डेय पर फ़िदा होता दिल।फेसबुकी आवाजाही से आते लिंकों के बीच रमता मन।तेज धूप से शुरू होकर दोपहर में मृत्यू को प्राप्त होती हुई एक सुबह।दुपहरी के बाद के तीन घंटे कूलर की हवा के बीच बिस्तर पर थाल खाती नींद।बुआ सास के बेटे की शादी की तैयारियों के बीच पत्नी से लगातार संवाद।मित्र राजेश चौधरी से शाम का विमर्श।हंस के हाल के अंक में शरद सिंह की कहानी पर टीका-टिप्पणी।तरुण तेजपाल के उपन्यास शिखर की ढ़लान पर की अनौपचारिक समीक्षा।संगम की तरह राजेश चौधरी जी के घर ही राजेन्द्र सिंघवी की आहट।आगामी सत्रह से अजमेर-कलकत्ता-बनारस-सारनाथ के सपने देखने को बुलाती रात।बातों के बीच बार बार आ जाती है बेटी की आईसक्रीम की माँग।घर से लगातार और समयबद्ध रूप से आती घंटियाँ।सारे ज़रूरी काम हो ही जाते हैं मेरे अपने तमाम बेकामों की फेहरिस्त के बीच।
बोधि प्रकाशन का तीसरा सेट आखिर आ ही गया।प्रकाशक भाई माया मृग जी का शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है।कुछ किताबें अभी पढ़ना बाकी है बहुत सी किताबों के साथ।बाकी तो और भी काम है जैसे उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर के नहीं रहने पर श्रृद्धांजलीनुमा संस्मरण लिखना है। जौहर पर एक आलेख अब तक आधा लिखा-सोचा पड़ा पडा रह गया है। कुछ कवितायेँ रफ़ और कमजोर कहला कर खुद को एक तरफ करके खड़ी है।उन अनमनी कविताओं को मनाना है। यात्राओं की योजनाओं के बीच मैं अकेला।जोड़ीदारों के साथ के प्रस्तावित सफ़र को लेकर दिल में गुदगुदी को सहेजना बाकी है।इस साल के स्पिक मैके अधिवेशन को लेकर मिलने वाली हाई ड़ोज का उत्साह अभी से हिलोर रहा है।और भी बहुत कुछ पॉजिटिव।मगर डायरी की समय सीमा समाप्त।
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