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13 मई, 2013

13-05-2013

एक समागम की तैयारियों के बीच फंसा हुआ आदमी।कुछ कन्फर्म टिकट के केंसल होने का दुःख झेलता बाकी बचे टिकट का मालिक।रास्ते की तैयारियों में काम आने वाली चीजों की फेहरिस्त बनाता एक फुरसतधारी  आदमी।हमसफ़र के बगैर घर के काम-काज निबटाने की भारी व्यस्तता के बीच एक पति।तेज़ गर्म हवाओं के बीच लू का डर और कच्ची केरी के पानी को सोचती जुबां।आखा तीज के शादी-व्याह से लौटे परेशान बाराती का घर में वापसी पर पहला दिन और शरीर के लगभग सभी जोड़ों में दर्द।एक ही करवट में गुज़रती नींद और दुपहरी आराम भोगती देह।
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हुकम का फोन और तेज दिमागी बुखार के बाज़जूद शाम के ठीक पांच-पांच पर आकाशवाणी में दाखिला।गर्मी में बिना शक्कर की चाय के साथ एक कहानी के मंचन की रिहर्शल और फिर रिकोर्डिंग के नाम हुयी शाम का अवसान।नयी सलाहों के साथ उच्चारण के लिहाज से स्क्रिप्ट में ज़रूरी बदलाव और दो उदघोषक आपसी संवाद में व्यस्त।कुछ री-टेक के बाद ओके होने के इंतज़ार में स्टूडियो में चहलकदमी करते तीन किरदार। सूत्रधार,शिवम और शिवालिका।कांच के उस पार एक कहानीकार और कहानी पर आवाज़ की परत बिछाते तीन मझोले कलाकार इस पार।इस पार स्क्रिप्ट की तीन प्रतियां और एक पानी की बोटल।दो में से एक खराब माईक और आँगन में फर्श पर इधर-उधर कुछ तार।एक तरफ धकेली हुयी दिवार के सहारे खड़ी तीन खाली पड़ी कुर्सियां।भावों के बीच उतार-चढ़ाव वाली संवाद डिलीवरी।नाइस, गुड, ओके, वाह जैसे कमेन्ट के बीच पूरी होती कहानी के साथ आरामदायक खात्मे की तरफ बढ़ता हुआ काम।

गुलमोहर का परिंदा कहानी के रेडियो रूपांतरण करते योगेश जी कानवा,भावना शर्मा और प्रकाश खत्री जी के साथ खाली वक़्त में बातों के ठहाके।तमाम बातों पर टिप्पणियाँ।योगासनों से लेकर ऑफिस कल्चर की।नेगेटिव ऊर्जा संचारित करते सहकर्मी से लेकर गृहस्थी में प्रवेश करती गप्प तक ।एक आदमी की आज़ादी के मायनों पर विशद चर्चा।एक घुटने की चोट के हित ज़रूरी व्यायाम।कितने विविध बिन्दुओं पर बातचीत।बाप रे बाप।आखिर में एक जश्न की बात नक्की करते हुए ड्यूटी चार्ट में कुछ बदलाव के साथ बैठक का समापन।मतलब तेरह सौ का पहाड़ा कम्प्लीट।एक अधिकारी के मन में रिश्ता स्नेह।एक अनुज की बातों से टपकती आत्मीयता।वरना कहाँ आजकल कोई होटल से फीकी चाय बनवा के पॉलीथिन की पेकिंग और डिस्पोजल कप के साथ लाये ही नहीं बल्कि गंदी ट्रे धोकर उसमें सर्व तक कर ले।'कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता।' जैसी सीख आज फिर काम आयी।
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बिना लागलपेट के बुलावे पर मित्र कनक जैन के घर रात्रि भोज।आमरस, चावल, भिन्डी, दाल, चपाती , चटनी। भरपेट भोजन।सभी आवश्यक चर्चाओं के साथ आठ से दस तक का एक ठप्पा मतलब एक संगत। भोजन एकदम नियम मुताबिक़।ठीक आठ घंटे के बाद जिसमें सुबह का भोजन शिव भोजनालय के नाम रहा। मामला हल्का भी है और गंभीर भी। पीहर गयी पत्नी के पति के खाली दिन और सुस्त रातें। अगले दिन की प्लानिंग में कुछ गंदे कपड़े धुलेंगे।पांतरे का झाडू-पोछा होगा।मित्रों को घर बुलावे की खुली छूट।घर से बाहर की तरफ जाता रास्ता एकदम बेरुकावट।रात होते होते रोमिंग लगने की गुंजाईश वाले ससुराल में ससुर के नंबर पर एक कॉल।कुछ भावुक बातें, टेक केअर, गुड नाईट के साथ उधर से चोंगा रखने की आवाज़।शुभ रात्रि।

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