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28 मई, 2017

किसी जानकार की संस्कृतिकर्मी माणिक पर एक टिप्पणी

संस्कृतिकर्मी माणिक का एक परिचय यह भी हो सकता है

चित्तौड़गढ़ राजस्थान के निवासी औए यहीं अध्यापनरत माणिक जी हमारी नज़र में एक नवाचारी प्रवृति के अध्यापक हैं.ग्रामीणपरिवेश में जन्मे, पले-बढ़ेऔर व्यवहार से बहुत सहज इन्सान हैं. चित्तौड़गढ़ जैसे मझले दर्जे के कस्बे में उनकी अध्यापकी और अध्यापन के समय बाद के खालीवक़्त में शहर में साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से उन्होंने शहर को कई नए आयाम भेंट किए हैं.उनके ब्लॉग और फेसबुकी अपडेट्स से गुजरने के बाद कोई भी साथी इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि उनका व्यक्तित्व कितनी विविधताओं से भरा हुआ है मगर उन्हें इस बात का रत्तीभर भी घमंड नहीं है.हमविचारों और खासकर युवाओं और स्कूली विद्यार्थियों के बीच उनके नित नए प्रयोग हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं.इसी तरह के ज़रूरी आयोजनों और उनके स्कूल में विजिट के दौरान हमने पाया कि वे अपने काम को बनी बनायी परिपाटी से कुछविलग ढंग से करने के आदी हैं.
कई बार यह भी लगा कि एक अध्यापक अगर समाज और शहर मेंपहले से चल रही सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाता चला आता है तो उसकी अध्यापकी में भी वे तमाम अनुभवधीरे धीरे अपना रंग छोड़ने लगते हैं.एक सरीखे ढर्रे पर चलने वाले शिक्षक समाज के बीच जो अध्यापक साथी अलग से अपनी पहचान बनाते हैं उनमें कुछ तो ख़ास होता ही है.माणिक जी जैसे युवा के साथ प्लस पॉइंट यह रहा है कि वेकई मोर्चों पर सालों तक सक्रिय रहे हैं.उनकी काम करने की सक्रियता और तल्लीनता ही उनके काम को बड़ा बनाती है.एसटीसी डिप्लोमा के बाद से तीन साल की निजी स्कूल की नौकरी,बाद के पांच साल पैरा टीचर्स प्रोजेक्ट का अनुभव और उसका संघर्ष कम नहीं था.इस बीच माणिक जी साल दो हज़ार सात से ही राजस्थान लोक सेवा आयोग के मार्फ़त चयनित होकर शहर से सत्रह किलोमीटर दूर एक प्राथमिक विद्यालय में थर्ड ग्रेड वेतन श्रृंखला अध्यापकचुने गए.भील बाहुल्य बस्ती में आठ वर्ष तक पढ़ने-पढ़ाने की तमाम संभवनाएं तलाशते हुए उन्होंने ने हडमाला बस्ती में नौनिहालों के साथ कई प्रयोग किए. कभी सफल हुए कभी असफल.कम संसाधनों और गरीब बच्चों के बीच काम में कई मुश्किलात आती रही मगर वे कभी घबराए नहीं.
इस बीच साल दो हज़ार दो से स्पिक मैके नामक संस्कृतिक आन्दोलन में लगातार दायित्व निर्वाहन और वोलंटियर बनकर अनुभव अर्जन करते माणिक जी ने स्कूली शिक्षा में अपने बच्चों को लाभान्वित किया जो आज भी बदस्तूर जारी है.स्कूली शिक्षा में अकादमिक पाठ्यक्रम के साथ ही साप्ताहिक बालसभा में शास्त्रीय संगीत और देश के विभिन्न हिस्सों से लोक गीतों के ऑडियो वीडियो संस्करण बच्चों को सुलभ करवाए.बच्चों को जीवन की शिक्षा देने के लिहाज से उन्हें कपड़े पहनने के ढंग से लेकर दन्त मंजन सहित नहाने धोने का सलीका सिखाने में भी कोई शर्म नहीं की.स्कूल की सफाई करने की बात हो या पथरीला इलाका होने केबावजूद परिवेश में पौधारोपण का अभियान, हमेशा बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की है.लगभग नीरस पाठक्रम के बीच अपने परिचित जानकार चित्रकारों को बुलाकर, बच्चों के लिए चित्रकारी कार्यशाला करवाने का मसला हो या भामाशाह के माध्यम से ज़रूरतमंद बच्चों को स्वेटर,पेन,पेंसल,युनिफोर्म,जूते दिलवाने का मुद्दा हमेशा उत्साह के साथ सकारात्मक काम किए हैं.वंचित तबके के विद्यार्थियों के बीच जीने की राह दिखाना वैसे ही कितना मुश्किल होता है मगर फिर भी हिम्मत नहीं हारी.बच्चों गुरु मित्र जैसी योजनाओं की तरह सौहार्दपूर्ण माहौल में शिक्षा के कई प्रयास माणिक जी की अध्यापकी का हिस्सा रहे हैं.कई बार उन्होंने स्कूली प्रार्थना के ठीक पहले भी शास्त्रीयसंगीतके माध्यम से ध्यान और योग की कक्षाओं के आयोजन कर बस्ती के उन बच्चों को गहरी अनुभूतियाँ दी है जो वे कभी सोच भी नहीं सकते होंगे.
माणिक जी ने साल दो हज़ार छह से आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी लगातार दस साल तक अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है इससे उनके उच्चारण के साथ ही व्यक्तित्व में अभूतपूर्व त्वरा का विकासहुआ है.अध्यापक का बहुमुखी होना विद्यार्थियों के लिए बड़ा लाभकारी साबित होता है.वर्तमान में माणिक जी राजकीय माध्यमिक विद्यालय दुर्ग चित्तौड़गढ़ जैसे ऐतिहासिक किले वाली जगह पर नियुक्त हैं.बीते एक साल में उन्होंने यहाँ भी कई नवाचार किए हैं.पहला ग्रीष्मकालीन पुस्तकालय जिसमें उन्होंने अपने निजी कलेक्शन से प्रतिनिधि कहानियां संकलन की बाईस किताबें एक आठवीं पास बच्चे के मार्फत बस्ती में वितिरित करवाई और गर्मी की छुट्टियों में उन्हें लगातार एक दूजे के बीच साझा करके पढ़ने का एक माहौल बनाया है.कक्षा आठ से दस तक के बच्चे इस उम्र में भी मन्नू भंडारी,कृष्ण चंदर,प्रेमचंद, ज्ञानरंजन जैसे बड़े रचनाकारों को पढ़ रहे हैं.इसका एक रिकोर्ड भी संधारित किया जा रहा है. अवकाशके बाद उनसे कहानियों पर फीडबेक लेना तय हुआ है. खैरऐसे नवाचार कम ही देखने में आते हैं जहां आजकल सिर्फ पाठक्रम से अलग अध्यापक कुछ भी करना बेमलतब समझते हैं.दूसरा प्रयोग प्राथर्ना सत्र में हिंदी के प्रतिनिधि कवियों की लोकप्रिय रचनाएं बच्चों को एक तैयारी के साथ यादकरवाकर उनका शानदार पाठ प्रस्तुत करने से जुड़ा है.यह भी बाकी विद्यार्थियों के लिए हतप्रभ करने वाली अनुभूति साबित हुई.विद्यार्थियों में कविता और खासकर हिंदीसाहित्य के प्रति रुझान बढ़ा है.

यहाँ यह भी जोड़ते चलें किमाणिक जी ने आकादमिक शिक्षा के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है और वे वर्तमान में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर से हिंदी की दलित आत्मकथाओं पर पीएचडी कर रहे हैं.साल दो हज़ार नौ से उन्होंने अपनी मेधा से अपनी माटी नामक एक साहित्यिक ई पत्रिका भी स्थापित की है.पत्रिका के सम्पादन संबंधी अनुभव एक अध्यापक को और ज्यादा गंभीर और संवेदनशील अध्यापक में तब्दील करते ही हैं ऐसा हमारा मानना है.कई सारी बातें हैं.कक्षा पांच तक के बच्चों के बीच अपने लेवल बाल पत्रिकाओं खरीदकरउन्हें बांटना और फिर चर्चा के माध्यम से बच्चों की प्रतिक्रियाएं जानना, इस बीच लागातार जारी रहा.दुर्ग स्कूल के बच्चे चकमक,बाल भारती,चमक,बालहंस,नन्हें सम्राट जैसी पत्रिकाएँ पाकर पुलकित हैं.सबसे आख़िरी और नया प्रयोग विद्यालयी वातावरण में सुबह सवेरे म्यूजिक सिस्टम की सहायता से विभिन्न प्रार्थनाओं के ऑडियो संस्करण पले करके एक माहौल बनाना है.दूजा मध्यांतर भोजन के वक़्त फिर म्यूजिक सिस्टम के मार्फ़त शास्त्रीय धुनें बजाना ताकि बच्चे एकाग्र हों.ध्यान की तरफ बढ़ें.प्रार्थनाओं की लय-ताल सीखें.बच्चे स्कूल के प्रति एक नया आकर्षण अनुभव kr रहे हैं.माहौल म्यूजिकल हुआ है.शहर में चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी और आरोहण नामक मंच के माध्यम से माणिक जी ने युवाओं को देश दुनिया के सभी ज़रूरी मुददों पर कई जानकारों के व्याख्यानऔर फिल्म स्क्रीनिंग करवाने के भी कई अवसर गढ़े हैं.फिल्म स्क्रीनिंग के अनुभव और आर्काइव का लाभ उठाकर उन्होंने बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित कईफ़िल्में स्कूली बच्चों के बीच स्क्रीन करके उन्हें एक विलग और अद्भुत अनुभव दिया है.कुल जमा ये धाकड़ अध्यापक हैं.जो एक जगह रुकते नहीं हैं और लगातार कुछ न कुछ करते रहते हैं.सभी तरह की गतिविधियों के पीछे कहीं न कहीं कोइ एक गहरी सोच शामिल रही हैं.

माणिक
सन 2000 से अध्यापकी। 2002 से स्पिक मैके आन्दोलन में सक्रीय स्वयंसेवा। 2006 से 2017 तक ऑल इंडिया रेडियो,चित्तौड़गढ़ से अनौपचारिक जुड़ाव। 2009 में साहित्य और संस्कृति की ई-पत्रिका अपनी माटी की स्थापना। 2014 में 'चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी' की शुरुआत। 2014 में चित्तौड़गढ़ आर्ट फेस्टिवल की शुरुआत। चित्तौड़गढ़ में 'आरोहण' नामक समूह के मार्फ़त साहित्यिक-सामजिक गतिविधियों का आयोजन। 

प्रतिभागिता:
कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सवों में प्रतिभागिता। अध्यापन के तौर पर हिंदी और इतिहास में स्नातकोत्तर। 'हिंदी दलित आत्मकथाओं में चित्रित सामाजिक मूल्य' विषय पर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोधरत। 

प्रकाशन: मधुमती, मंतव्यकृति ओर, परिकथा, वंचित जनता, कौशिकी, संवदीया, रेतपथ और उम्मीद पत्रिका सहित विधान केसरी जैसे पत्र  में कविताएँ प्रकाशित। कई आलेख छिटपुट जगह प्रकाशित।माणिकनामा के नाम से ब्लॉग लेखन। अब तक कोई किताब नहीं। 

सम्पर्क:
चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान। मो-09460711896, ई-मेल manik@apnimaati.com

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