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23 अक्टूबर, 2010
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कविता:- पिताजी का मकान

शनिवार, अक्टूबर 23, 2010

पिताजी का मकान ------------  छूट्टी के बाद का बचपन बीत गया खेतों की मेढ़ पर दिशाहीन हो डोलते फिरने में कहाँ दिन गु...

21 अक्टूबर, 2010
कभी तो कबूलें हकीक़त

कभी तो कबूलें हकीक़त

गुरुवार, अक्टूबर 21, 2010

कभी तो कबूलें हकीक़त  कभी तो फेंकें दूर झूंठ की चादर जी लें कुछ देर  नाटकबाजी के विरह में  सोच कुछ ऐसा ही मन में  आज दी है बचपन को शक्ल  ...

16 सितंबर, 2010
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कविता:-ढूँढता हूँ वो रास्ते

कविता ढूँढता हूँ वो रास्ते -------------------------------- जाते थे रास्ते एक गाँव से दूजे गाँव को एक घर से दूजे घर को मौहल्ले से...

 
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